- अशोक रावत
- कविता / ग़ज़ल
उजालों की तरफ
तअज्जुब क्या है, मेरा घर अगर वीरान रहता है,
यही अंजाम होता है जहाँ ईमान रहता है.
अजब हालत हैं छत एक, आँगन एक, ज़ीना एक,
मगर एक दूसरे से आदमी अनजान रहता है.
तअज्जुब क्या है, मेरा घर अगर वीरान रहता है,
यही अंजाम होता है जहाँ ईमान रहता है.
अजब हालत हैं छत एक, आँगन एक, ज़ीना एक,
मगर एक दूसरे से आदमी अनजान रहता है.
युग बीते!
कितने युग बीते।।
घाव लगे अन्तस में गहरे,
सांसों पे यादों के पहरे।
आशा के मोती की खातिर ,
आकर हम कूलों पर ठहरे।।
वे स्वयं भू हैं,
वे सर्वज्ञ हैं, ज्ञानी हैं,
वे स्वघोषित मठाधीश हैं,
वे ही मुवक्किल, मुंसिफ और न्यायाधीश हैं।
जिस प्रकार चायना के मॉल का कोई भरोसा नहीं रहता है फिर भी इसका उपयोग करना हमारी जिन्दादिली है, उसी तरह आजकल मूड़ का कोई भरोसा नही कब खराब हो जाये यह एक गंभीर समस्या बन गई है
मुजफ्फरनगर के नवीन मंडी स्थल पर प्रातः भ्रमण और संध्या भ्रमण के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। अपने मित्रों के साथ एक शाम मैं भी वहां घूमने चला गया। वहां मेरी दृष्टि बहुत सारे ऐसे बछड़ों पर पड़ी जिनका कोई मालिक नहीं था, सब अपनी अपनी मर्जी के मालिक थे।
यह उस समय की बात है जब मैं एक राष्ट्रीय कृत बैंक में सेवारत था। जिस ब्रांच में मेरी पोस्टिंग थी वहां के स्टाफ में महिलाओं की संख्या अधिक थी। उस दिन आंगनवाड़ी की महिलाओं के खाते खुलने थे जिसके कारण बैंक का पूरा हॉल महिलाओं से भरा हुआ था।
दफ्तर में ये ख़बर आग की तरह फैलने लगी कि कल जो विमल तेज बुखार में तप रहा था आज उसका कोविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आया है। अब सबके बीच सुगबुगाहटें बढ़ने लगीं।
और लाख कोशिश के बाद भी...प्रतिमा को बचाया नहीं जा सका। प्रतिमा तो पिछले 2 माह से कोमा में है जब से वो बाथरूम में फिसल कर सिर के बल गिर पड़ी थी,
गर्मियों का मौसम था| हमेशा की तरह गर्मियों की छुट्टियों में सपरिवार अपने गाँव गए हुए थे| जब वापिस लौटे तो पाया, ड्राइंग-रूम में इधर-उधर कुछ तिनके फैले हुए हैं| अरे! ये तिनके कहाँ से आ गए? किस ने फैलाये होंगे? सब हैरान थे और चारों तरफ अपनी निगाहें दौड़ा रहे थे| आखिर पता चल ही गया|
"मैडम, मुझे भी एनुअल डे के कल्चरल प्रोग्राम में पार्टिसिपेट करना है l प्लीज़, मुझे भी ग्रुप डाँस में ले लीजिये l" 12 वर्ष की सातवी में पढ़ने वाली कुषा ने झिझकते हुए अपनी म्युज़िक टीचर से कहाl
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