अतीत के दंश
वृक्ष बन खड़े हैं ।
शाखाओं की ,
विशालकायता
यमदूत सी लगती है ।।
पिघलता यौवन ,
बुझती सुंदरता ,
दूर घने जंगल में
जलते दिये
से साँसें भरती है ।।
शेष प्रेम ,
शेषदंश से
घायल
तमस के प्रकाश में
अपनी
डगर चुनती है ।।
झुकी कमर
लदी पीठ पर उमर
सोच स्मृतियों
के अंश
गुदगुदाती,
लजाती है ।।