- राम कुमार कृषक
राम कुमार कृषक जी की कविता
सार्थक संध्या नहीं थी आज की ,
बेपरों चर्चा रही परवाज़ की ।
थे वही क्यों थे मगर बातें हुईं ,
कुछ अदीबों के अलग अंदाज़ की ।
सार्थक संध्या नहीं थी आज की ,
बेपरों चर्चा रही परवाज़ की ।
थे वही क्यों थे मगर बातें हुईं ,
कुछ अदीबों के अलग अंदाज़ की ।
कुछ अधूरा सृजन ,बिखरे सपने
कुछ धुंधली यादेँ, बिछड़े अपने
कुछ अश्रु बूंद ठहरी पलकों पर
मन में उभरते कुछ चित्र अधबने
इनको ज़रा उकेरूं तो गीत लिखूं।
चालीसवें बसंत पर हूँ
कल रात की ढ़लान के बाद
अभी भी मैं शायद खिला हूँ...
पर जर्जरता क्षीणता तो नियति है।
आये फिर लहरों में तिरने के दिन
घोल रही मधुगन्धा मदमाते घोल
इच्छाएँ घूम रहीं बाँध-बाँध टोल
पल्लव से अंतर के चिरने के दिन
जिस रोज तुम्हारी गागर से सतरंगी रंग छलक जाए .
उस रोज समझना धरती पर फिर फागुन आने वाला है
अनसुनी सी रही रात की रागिनी
अनमने से सपन कसमसाते रहे।
हम सजाते रहे छांव के गुलमोहर
वो खड़े धूप में तन जलाते रहे।
आमों पर खूब बौर आए
भँवरों की टोली मँडराए
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाए
महफ़िल पै थी निगाह यही सोचते रहे,
आई किधर से वाह यही सोचते रहे।
उम्मीद कम थी फिर भी भरोसा ज़रूर था,
कोई तो दे पनाह यही सोचते रहे।
प्रहर-दिवस, मास-वर्ष बीते
जीवन का कालकूट पीते.
पूँछें उपलब्धियाँ हुईं
खेलते हुए साँप-सीढ़ी
मंत्रित-निस्तब्ध सो गयी
आग पर पानी
डालकर
राख सुलगाते हैं
कितने कमजोर
हैं, हम जो नाहक
डरकर भाग जाते हैं।
258, Metro Apartments,
Bhalaswa Metro Station
Delhi-110033
Phone: 9810234094, 9999566005
email: editor@rajmangal.com
सम्पादक मंडल
मुख्य सम्पादक : कंचन गुप्ता
साहित्य सम्पादक : डॉ पुष्पलता
सह सम्पादक : राजलक्ष्मी दूबे
रचना प्रेषित करें
राजमंगल टाइम्स में प्रकाशन हेतु कहानी, कविता, हास्य व्यंग्य, नाटक तथा अन्य साहित्य, संस्कृति, परिवार, स्वास्थ्य, पर्यटन, चित्रकला तथा बाल साहित्य से संबंधित हिंदी रचनाएँ आमंत्रित है।
प्रकाशन के लिए लेखक editor@rajmangal.com पर अपनी रचना ईमेल कर सकते हैं।