आमों पर खूब बौर आए
भँवरों की टोली मँडराए
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाए
फिर उठें गंध के गुब्बारे
फिर महके अपना चन्दन वन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
गौरैया बिना डरे आए
घर में घोंसला बना जाए
छत की मुँडेर पर बैठ काग
कह काँव-काँव फिर उड़ जाए
मन में मिसिरी घुलती जाए
सबके आँगन हों सुखद सगुन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
बच्चों से छिने नहीं बचपन
वृद्धों का ऊबे कभी न मन
हो साथ जोश के होश सदा
मर्यादित बनी रहे फैशन
जिस्मों की यूँ न नुमाइश हो
बदरँग हो जाएँ घर-आँगन
नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन
घाटी में फिर से फूल खिलें
फिर रुके शिकारे तैर चलें
बह उठे प्रेम की मन्दाकिनि
हिम-शिखर हिमालय से पिघलें
सोनी मचले, महिवाल चले
राँझे की हीर करे नर्तन
नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन
विज्ञान, ज्ञान के छुए शिखर
पर चले शांति के ही पथ पर
हिंदी भाषा के पंख लगा
कम्प्यूटर जी पहुँचें घर-घर
वे देश रहें खुशहाल ‘व्योम’
धरती पर जहाँ प्रवासी जन
नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन
थोड़ी-सी राजनीति सुधरे
थोड़ा-सा जनगण भी सुधरे
मीडिया चले सच के पथ पर
छँट जायें निराशा के कुहरे
शिक्षा के विस्तृत आँगन में
कुछ और हो सके परिवर्तन
नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन
कोरोना दुनिया से जाए
पहले सी रौनक आ जाए
स्कूल खुलें, बच्चे खेलें
जन-गण-मन पुलकित हो जाए
युद्धों के रथ पर चढ़े हुए
देशों में जागे संवेदन
नववर्ष तुम्हारा अभिनंदन