सहसा बारिश में सर्द हवा,
आरंभ निशा का हुआ रवां,
वीभत्स ध्वनि में शोर मचाने,
मचले पंछी तब घर को जाने,
बीजुरी भी अब कहाँ शांत थी,
कड़कन उसकी भयाक्रांत थी,
एक झोंके ने खूब झुलाया,
वृक्ष तनों को नृत्य कराया,
एक तना दम तोड़ रहा था,
साथ पेड़ का छोड़ रहा था,
यह देख के चिड़िया घबराई,
एक युक्ति तब उसको आई,
उड़ी बच्चों को साथ लिए,
जिज्ञासा भरा विश्वास लिए,
हर एक दिशा में सब देखा,
नीचे पाथर का घर देखा,
नभ से उतरी घर में आई,
सन्तान सुरक्षित मुस्काई,
तूफानी थपेड़े तेज हुए,
मानों क्रोधित मेघ हुए,
गृह नहीं वह एक गुहा थी,
भूखी शेरनी रुकी वहाँ थी,
दहाड़ लगाकर बाहर आई,
शिकार देख कर मुस्काई,
सहम गई चिड़िया तब ही,
तूफान - गुफा मृत्यु सब ही,
शेरनी थोड़ा सम्मुख आई,
पूछा तुम क्यों यहाँ आई,
बोली चिड़िया ये बच्चे मेरे,
जीवन का आधार ये मेरे,
अश्रु से भरी चक्षु झोली,
विलाप भरे स्वर में बोली,
बाहर भी ये मर जाएंगे,
यहाँ तेरी भूख मिटाएंगे,
मेरे घर तेरा अभिनंदन,
कहे शेरनी ना कर क्रन्दन,
निश्चित ही है क्षुधा मुझे,
पर अश्रु तेरे हैं सुधा मुझे,
मैं भी जन्म की दाता हूँ
मैं भी शेरों की माता हूँ,
मुझको कोई खेद नहीं,
मातृत्व में कोई भेद नहीं,
दोनों में मधुर संवाद हुआ,
ना फिर कोई विवाद हुआ,
इंसानों से यह आशा है,
समझें जीवों की भाषा है,
धरती है कहती बारंबार,
पर्यावरण पर करो विचार,
परोपकार जीवन का सार,
सुखी रहेगा यह संसार।।