कभी कोशिश जो तेरी मंज़िले नाकाम तक पहुंचे
तभी मुमकिन है तेरी आरजू अंजाम तक पहुँचे
चमकती धूप को तुम अपनी आँखों में बसा रखना
जरूरी तो नहीं हर एक नज़ारा शाम तक पहुंचे
यहाँ हर शय में पोशीदा मेरे गम की कहानी है
मेरी ख्वाहिश है ये किस्सा जुबानेआम तक पहुंचे
पिला दे जामे आखिर साकिया तू अपने हाथों से
अब इतना भी नहीं के हाथ मेरा जाम तक पहुंचे
वहाँ की खाक मिलती है बड़ी तकदीर वालों को
हमारा नाम भी उस कूचा-ए- बदनाम तक पहुंचे
न कुछ बनने की मर्ज़ी है न कुछ कहने की ख्वाहिश है
तमन्ना है मेरी आवाज तेरे नाम तक पहुंचे
भला कब तक भरोगे दिल के साग़र को रुबाई से
रुबाई बस वही है जो उमर खैयाम तक पहुँचे