प्रेम चंद ने सही कहा था "कहानी वह ध्रुपद की तान है जिसमें गायन महफ़िल शुरू होते ही अपनी प्रतिभा दिखा देता है।" मुझे तेजेन्द्र शर्मा की कहानियाँ पढ़ने का अवसर मिला।
तेजेन्द्र शर्मा की कहानियाँ पढ़ना शुरू करते ही यह अहसास हो जाता है कि वह सिद्धहस्त रचनाकार की कहानी पढ़ रहा है। वे जिस भी पात्र को लेकर कहानी बुनते हैं उसके मनोविज्ञान को बाखूबी समझते हैं। सभी कहानियाँ पात्रों के मनोवैज्ञानिक धरातल पर बैठकर लिखी गई हैं। 'हाथ से खिसकती जमीन' कहानी में नायक नरेन के जीवन का मुख्य मनोभाव जाति भेद है जिससे भागकर वह विदेश पहुँचता है वहाँ रंग भेद का शिकार हो जाता है। उस मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य है। बाकी अन्य चरित्र, भाषा शैली, कथावस्तु विन्यास उसी के सहायक हैं। कहानी का पात्र नरेन दो बार प्रेम में पड़ता है जिसमें पहली बार जाति के कारण असफल रहता है। दूसरी बार प्रेम को पाकर भी रंगभेद के कारण अपने मनोभाव से पार पाने में असफल ही रहता है। छिलते हुए मनोभाव से शुरू हुई कहानी का अंत भी उसे दिलासा देते मनोभाव से हो जाता है।
पासपोर्ट का रंग कहानी अपने देश में रचे-बसे देशभक्त प्रवासी की वेदना से झिंझोड़ डालती है। एक तरफ उसका परिवार उसके साथ रहने की मजबूरी दूसरी तरफ अपनी मातृभूमि से लगाव इन्हीं दो पाटों के बीच वह पिसता हुआ दम तोड़ देता है। केवल अपने देश की नागरिकता छूट जाने से वह टूटता और मिल जाने से जुड़ता महसूस होता है। जबकि उसी की स्थिति में रह रहे दूसरों को यहाँ तक कि उसके अपने बेटे को भी वह पीड़ा नहीं होती। विदेश में बसा कोई व्यक्ति अपनी मातृभूमि से इस कदर प्रेम करता है कि केवल नागरिकता का पासपोर्ट मिल जाने से वह जिंदगी से जुड़ सकता है जो उसे कचोटती रहती है। कहानी प्रवासियों की मानसिक स्थिति और मजबूरियों से रूबरू कराती है।
कैंसर कहानी खतरनाक बीमारी से जूझते परिवार के हर सदस्य की मनोदशा का इतना मार्मिक चित्रण करती है शायद ही कोई कर सके। पाठक की आंखें कई बार भीगती हैं। आसपास के पात्रों का भी अद्भुत चित्रण है। कहानी अपने हर पात्र के मन की हर तह तक जाती है। अन्तर्मन की वेदना को व्यक्त करने में लेखक का कोई सानी नहीं है। इसमें नायिका की बीमारी का अंजाम बताए बगैर छोड़ देना ही सही लगता है।
गन्दगी का बक्सा यूँ तो खूबसूरती से बुनी गई कहानी है मगर गन्दगी का बक्सा शीर्षक होने के कारण शायद लेखक को इसका यही अंत करना था। पुरुष स्त्री केवल दोस्त नहीं हो सकते ये इस कहानी को पढ़कर लगा। वे जिस्मानी रिश्ते तक जाकर ही सांस लेते हैं। जबकि भारतीय संस्कृति के ताने बाने से जकड़ी स्त्री दोस्ती तो चाहती है जिस्मानी रिश्ता उसे पाप, गलत लगता है। वह इसी आकर्षण-उलझन के बीच फसी रहती है। लेखक की कहानियों पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव है। उनकी अधिकतर कहानी की नायिकाएँ अपने मित्र से रिश्ता बना लेती हैं। ये वहाँ का सच भी है यधपि उनकी कहानियाँ मानसिक भूख की भटकन से शुरू होती हैं और मनोवैज्ञानिक की तरह मन खोलती हैं।
रचनाकर्म पर ही लेखक के परिवेश का प्रभाव नहीं होता पाठक की रचना पर टिप्पणी पर भी पाठक के परिवेश व्यक्तित्व का प्रभाव होता है। वह रचना को अपने परिवेश व्यक्तित्व के आईने में रखकर पढ़ता है इसलिए रचना पर लिखी किसी टिप्पणी को इस नज़रिए से भी लेखक व अन्य को देखना चाहिए। विशेष रूप से तब जब लेखक प्रवासी भारतीय हो और टिप्पणीकार भारतीय वह भी स्त्री।
देह की कीमत कहानी रिश्तों के स्वार्थ लोभ की पराकष्ठा को अभिव्यक्ति दे रही है। माँ, भाई सब में उमड़ी पैसों की भूख ने परिजन की मौत का गम ठिकाने लगा दिया है। वहीं उसी परिवार में पुत्र के गम का पहाड़ छाती पर रखा होने के बावजूद पिता पुत्रवधु और पोते का रक्षक बनकर उनके पक्ष में फैसला करता है। जो व्यक्ति पैसे के लिए गैरकानूनी काम करेगा उसके परिजन भी तो पैसे के लोभी ही मिलेंगे। इतनी बारीकियाँ भी कहानीकार से छूटी नहीं हैं। कहानी के अंत में पम्मी का ये सोचना कि पैसे उसके साथ पाँच महीने बिताए वक्त की कीमत है या पति की देह की कीमत शीर्षक को सार्थक कर देता है।
"एक बार फिर होली" पढ़ी। अद्भुत कहानी नारी जीवन की विवशताएँ, संवेदना, पीड़ा, वतन की मिट्टी में रची बसी रूह की वेदना बहुत खूबसूरती से उकेरी है।
कहानी इंतज़ाम पढ़ी। कहानी बहुत मार्मिक है। लेखक से एक सवाल, उसमें एक बात जानने की इच्छा है कि जिल एलिसन के लिए जो इंतजाम करना चाहती है वह कोई और होगा या वह जेम्स को ही ये मुझे क्लियर नहीं हुआ। पाठक अपने पूर्वाग्रहों सोच के दायरे से भी घिरा होता है, विदेशी कल्चर से ज्यादा परिचित नहीं होता। अगर जेम्स है तो भारतीय पाठक इस कहानी को लम्हे पिक्चर की तरह लेगा प्रेमी और पति का दर्जा भारतीय पाठक एक सा मानता है। वह प्रेमी से या प्रेमिका से अपेक्षा करता है कि वह उसके बच्चो को पिता माँ की दृष्टि दे। कहानी बहुत खूबसूरत तरीक़े से बुनी गई है।
जेम्स को भारतीय पाठक स्वीकार नहीं करेगा। यह कहानी इतनी खूबसूरत होते हुए भी आलोचना में चली जाएगी। अगर लास्ट में एक पंक्ति जोड़ देते कि उसकी नजरों के सामने ---- (कोई और नाम) का चेहरा आ गया तो कहानी का अंत सबको स्वीकार होता। अब तो कहानी बुनी जा चुकी है। उस कल्चर में ये सत्य हो सकता है। आपने सत्य लिखा। हम किसी पात्र को अपनी मर्जी से हांक नहीं सकते खैर आप कहानी वाल पर लगाएँगे तो भारतीय पाठक उसे लम्हे पिक्चर की तरह लेगा वह चाहता है कि वह व्यक्ति कोई और हो ये दिक्कत है। या मेरे ही साथ है खैर... कहानी स्त्री की अन्तर्मन की पीड़ा को बहुत खूबसूरती से उकेरती है बधाई आप एक सिद्धहस्त कहानीकार हैं। अगर पाश्चात्य संस्कृति को समझना है तो आपकी कहानियाँ अवश्य पढ़नी चाहिए।
कहानियों की खासियत ये है वे स्थाई प्रभाव छोड़ती हैं। पाठक पढ़ने के बाद कभी भूलता नहीं है। देह की कीमत, ढिबरी टाइट, कैंसर जैसी कहानियाँ शायद सच्चे हादसों पर आधारित हैं। हिला देती हैं। प्रवास का पूरा सच खोलकर रख देती हैं।
कहानी में जबरदस्ती का ठूंसा आदर्शवाद, महानता उसकी मौलिकता सत्यता को खा जाता है, वह तेजेन्द्र शर्मा जी की किसी भी कहानी में नहीं मिलता। जाने किसने शुरू में कहानी शब्द की उत्पत्ति की होगी। मुझे ऐसा लगता है जो पात्र ने कहा नी अर्थात वह कह नहीं सकता वही कहना कहानी है।
जिसे कहने में कहानीकार पारंगत हैं। एक पाठक की हैसियत से मुझे उनकी कहानियाँ अपने द्वारा पढ़ी गई कहानियों में वे हिन्दी साहित्य की सर्व श्रेष्ठ कहानियों में से लगी।
कब्र का मुनाफा व्यक्ति की मुनाफाखोर प्रवृति पर बुनी गई अद्भुत कहानी है जिसमें मरने के बाद दफनाने को कभी जगह न मिले इस चिंता में कब्र बुक करवाते- करवाते जब दो मित्रो को बाद में पता चलता है केंसिल करवाने पर उन्हें बढ़े रेट के हिसाब से मुनाफा होगा वे उसे ही व्यापार बना लेते हैं।
लेखक अपनी कहानियों के लिए विषय भी असाधारण चुनते हैं।