हर महफ़िल में, हर मौक़े पर थी दुश्वारी, क्या करते,
भक्तजनों के बीच में रहकर रायशुमारी क्या करते !
संत खड़े जयकार कर रहे, ज्वाला देवी भड़क रहीं,
ऐसे में हम ध्वजा-नारियल-पान-सुपारी क्या करते !
गले लगाने को थे लेकिन पीछे हटना पड़ा हमें,
दिखी रामनामी चोले में छिपी कटारी, क्या करते !
नामुराद के थे मुरीद सब बहस-जिरह पर आमादा,
लाइलाज थी दीवानेपन की बीमारी, क्या करते !
घर के मालिक ने ही घर में सेंध लगाई चुपके से,
आप बतायें, ऐसे में हम पहरेदारी क्या करते !
इतने चौकीदार हो गये गली-मोहल्लों, कूचों में,
चौकीदारों की बस्ती में चौकीदारी क्या करते !
बदले कुछ तस्वीर, सरासर जिम्मेदारी थी उनकी,
हमने ही अपने सिर पर ली जिम्मेदारी, क्या करते !
सपने देखे, कोशिश भी की, जीत का तोहफ़ा मिले हमें,
पर क़िस्मत में लिखी हुई थी मात करारी, क्या करते !
जिन्हें होश में लाना था औरों को, ख़ुद मदहोश हुए,
हम पर भी अरसे तक छाई रही ख़ुमारी, क्या करते !