डॉ. सुधा ओम ढींगरा का उपन्यास 'नक़्क़ाशीदार केबिनेट' पढ़ा। स्त्री अस्मिता पर जैसे सम्वेदनाओं की नक़्क़ाशी जड़ दी है। पुस्तक हाथ में लेने के बाद पाठक को पकड़ लेती है। बिना पूरी पढ़े वह उसे रखता नहीं है।
उपन्यास की नायिका एक सशक्त स्त्री है जीवन से मिले अजीब, भयावह संघर्षों, खतरों से भी चूकती नहीं है। अमेरिका और भारत दोनों देशों की संस्कृति का निष्पक्ष व ईमानदार विश्लेषण पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत हुआ है। लेखिका के व्यक्तित्व व कृतित्व की झलक भी पुस्तक में अभिव्यक्त हुई है।
लेखिका स्त्री के कोमल मन की खूबसूरत मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति करने में सिद्धहस्त हैं। स्मृतियों के वातायन खुलते, हिलते - डुलते, संभलते रहते हैं। रिश्तों के रिसते नासूर, चोरी के धन का तांडव, प्रेम का परिष्कृत रूप, मित्रता की गरिमा त्याग, मानव की मानवीयता, तन्हाई का दंश, स्त्री शक्ति का संघर्ष, बुराई का अंत, सत्य की विजय, प्रकृति का रोष, लोभ की पराकाष्ठा, मनुष्य की नीचता और उच्चता सभी कुछ खूबसूरत नक़्क़ाशी सा जड़ दिया गया है उपन्यास में। सहज सरल भाषा में लिखा नक़्क़ाशीदार केबिनेट उपन्यास वास्तव में बेजोड़ कृति है। उग्रवाद, देहव्यापार, आतंकवाद, धर्म के नाम पर कत्लेआम, सब कुछ अभिव्यक्त हुआ है। अतीत और वर्तमान का तुलनात्मक अध्ययन करती हुई लेखिका अपनी नायिका के सुखद, सशक्त अनुकरणीय व्यक्तित्व के साथ कलम को विराम देती हैं।
प्रकृति और इंसानों के ही नहीं जीवों के जीवन में भी आए चक्रवात की गाथा है नक़्क़ाशीदार केबिनेट। चक्रवात के समय मेरे घर में पानी है आप नहा सकते हैं, पानी ले जा सकते हैं। मेरे पास बहुत बड़ा घर है, छत है आप आकर रह सकते हैं, पढ़कर मानवीयता से रूबरू होते हैं तो चोरी की घटनाएँ मनुष्य की नीचता का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। हेलीकॉप्टर से पुलिस का पहुँचना अमेरिकी प्रशासन का मुस्तैद होना दर्शाता है। नायिका को अपने ही देश में सगे लोगों द्वारा ठगे जाना परदेश में अजनबी विदेशी दम्पत्ति का स्नेह सहयोग सिद्ध करता है अच्छे लोग बुरे लोग कहीं भी किसी भी जाति देश धर्म में हो सकते हैं और भी बहुत कुछ पठनीय सराहनीय है उपन्यास में जिसे पढ़कर ही महसूस किया जा सकता है।
खूबसूरत उम्दा कृति के लिए लेखिका को साधुवाद।