जुबानी तीर चल गए
जख्म अभी रिसते हैं
बदले उम्र के कैलेंडर
हम बस दिन गिनते हैं
तालाब मर गए बेमौत
हम बस स्यापा करते हैं
छोड़ आए हम भी गांव
बुजुर्ग बसेरा करते हैं
रातों को रोते हैं तन्हां
सुबह को खुब हसंते हैं
इत्तेफाकन भी न मिले
यार ये कोशिश करते हैं
सजल आंखों से कहा
तुम्हारे शहर से चलते है
जला करो दीये की तरह
अंधेरों के मन बहलते हैं
वेगवान नदी की बेचैनी
किनारे खूब समझते हैं
कभी नजर मिले
सो लाजिमी है
आंख का पानी
बचाए रखिए
जिंदा हूं यारो
आपके दम से
नजरों में मुझे
बनाए रखिए
पुरानी किताबें
भी पलटता है
सूखा गुलाब
तलाशते रहिए
रोना भी कभी
जरूरी सा लगे
ठहरा सा दर्द
बहने दीजिए
सलीब पर टंगे
मेरे वजूद को
पैनी कीलों से
आजमाते रहिए
निखालिस खरा
हूं, बेलौस सा
जब मन चाहे
पुकारा कीजिए