अपरिचित सी गलियाँ
आशंकाओं से भरे बाजार
बैठक में पसरा है मौन
सन्नाटों से भरे हैं स्कूल
वीरान हैं खेल के मैदान.
बचता हूँ
किसी के भी घर जाने से
कोई घर न आये
कामना करता हूँ.
आफिस में
कागज़ों से खेलता हूँ
सहकर्मियों, आगुंतकों के
संपर्क में आता हूँ
सो घर आकर बचता हूँ
परिजनों के निकट आने से
सिमटकर रह जाता हूँ
अपने कमरे में.
यदा- कदा करता हूँ
कमरे की सफाई
होले से साफ करता हूँ
नोनू की तीन पहिया साइकिल
पर नहीं चाहता
इन दिनों में
वह ननिहाल आये
फरिश्ते- सा हँसता हुआ.
तस्वीरों, मोमेंटोज से
धूल हटाता हूँ
जिन्हें देखने
महीनो से कोई नहीं आया है.
बार- बार पढ़ता हूँ
से. रा. यात्री की कहानियाँ
मित्रो के कविता संग्रह.
देखता हूँ
साहित्यिक आयोजनों की एलबम
जिनमें कैद हैं
मित्रो की मुस्कराहटें -उलाहने.
जब मूड हो तो
फेसबुक पर घूम आता हूँ
जहाँ मिलता है
मित्रो का स्नेह
जिनसे कभी मिलना नहीं हुआ.
सुबह-शाम
करता हूँ प्रार्थना
परिजनों के साथ
सभी मित्र
अपने- पराये
रहे स्वस्थ
गुजर जाये
यह कातिलाना दिन
फिर लौट आये
वही मौसम
बदल जाये दुनिया
जिसमें अंजानों के साथ भी
मिला सकूँगा हाथ
दोस्तों की तरह.