और लाख कोशिश के बाद भी...प्रतिमा को बचाया नहीं जा सका। प्रतिमा तो पिछले 2 माह से कोमा में है जब से वो बाथरूम में फिसल कर सिर के बल गिर पड़ी थी,
सिर पर नल का कोना लगा और बहुत सारा खून बहा और वो बेहोश हो गई थी।
उस समय बच्चे स्कूल गए थे और निखिल ने घबरा कर एम्बुलेंस को फोन किया, आसपास के परिचित लोग आ गए और वह प्रतिमा को ले कर हॉस्पिटल आया। खून बहुत बह गया था। इमरजेंसी वार्ड में एडमिट किया गया। जल्दी ही सिर की सर्जरी हुई खून चढ़ाया गया, लेकिन 2 दिन के बाद भी प्रतिमा को होश नहीं आया। डॉक्टर्स ने सभी कोशिशें कर ली लेकिन उफ़्फ़!!!कोई भी फायदा नहीं हुआ। आखिरकार डॉक्टर ने भी जवाब दे ही दिया कि अब बस ईश्वर ही कुछ कर सकते है,क्योंकि सर्जरी तो ठीक हो ही गयी है।
आखिरकार 15 दिन हॉस्पिटल में रखने के बाद पीयूष ने घर-बाहर की सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुएप्रतिमा को हॉस्पिटल से घर शिफ्ट किया गया और एक नर्स के द्वारा समय पर इंजेक्शन के जरिए दवाइयाँ वगैरेदिये जाने का इंतज़ाम भी किया गया। पीयूष ने अब घर पर प्रतिमा की जगह ले ली थी। बच्चे अब पीयूष पर आश्रित हो गए थे। पीयूष ने ऑफिस में अरजेंटलीवडाल कर एक लंबी छुट्टी ले ली थी। उसने अपने दिन-रात एक कर दिए थे, प्रतिमा को कोमा से बाहर लाने में, ऐसा कोई इलाज नहीं था जो उसने न करवाया हो। जो जैसा कहता, वह सुनता और तर्क के आधार पर उसे करने की कोशिश करता, कभी यूं ही परिचितों के घरेलू उपाय को वो उनके सामने हाँ में हाँ मिलता लेकिन एक पढ़ा-लिखा इंसान होने के कारण वह उसे टाल देता। ईश्वर के सामने हाथ जोड़-जोड़ कर प्रतिमा को होश में लाने के लिए गिड़गिड़ा कर प्रार्थना करता। उसके सामने प्रतिमा और उसके साथ के 14 वर्ष का सुख-आनंद से भरा वैवाहिक जीवन का एक-एक पल जीवंत हो उठता है और वह पुनः एक नई आशा के साथ प्रतिमा की सेवा-सुश्रुषा में जुट जाता है। डॉक्टर कह चुके थे कि प्रतिमा के बचने की सिर्फ 5% उम्मीद है और पीयूष के लिए जैसे यह 5% उम्मीद ही जिंदा रखे हुए है। 11 वर्ष की निधि और 8 वर्ष का निखिल बहुत छोटे हैं। निधि तो फिर भी माँ की बीमारी को ले कर थोड़ा सजग है लेकिन निखिल बस इतना ही जानता है कि उसकी माँ को बुखार आया है। पीयूष घर-बाहर बड़ी अच्छी से सँभाल रहा था। लेकिन उसे बच्चों और पत्नी की बहुत चिंता रहती है।
निधि थोड़ी समझदार है और बेटियाँ वैसे भी माँ के साथ ज्यादा रहती है इसलिए वह अपनी माँ की प्रतिछाया रहती है। उसका बोलना, खाना,चलना,काम करना जैसे कई बातों में वह प्रतिमा की तरह ही थी। 2 माह बीत गए लेकिन प्रतिमा कोमा की स्थिति से बाहर नहीं आ पाई और एक दिन जब पीयूष सुबह उठा और हमेशा की तरह प्रतिमा को गुड मॉर्निंग कह कर उसके माथे को चूमा तो वह स्तब्ध रह गया... प्रतिमा का शरीर बर्फ की तरह ठंडा पड़ चुका था। उसकी साँसें बंद हो चुकी थी और पल्स जा चुकी थी। पीयूष एक पल के लिए अपने होश-हवास खो कर उदास हो गया,उसकी आँखों में समंदर लहरा रहा था। तभी निधि और निखिल भी स्कूल के लिए तैयार हो कर हमेशा की तरह माँ को गुड मॉर्निंग कहने के लिए प्रतिमा के कमरे में आए और अपने पापा को माँ के बेड के पास इस तरह रोते हुए देख कर पूछा-पापा क्या हुआ, आप क्यों रो रहे है? चलिएहमें मम्मी को गुड मॉर्निंग तो कहने दीजिये।
पीयूष ने सिर झुका कर कहा- बेटा, अब तुम्हारी माँ कभी नहीं उठेगी। वह भगवान के पास चली गई,यह कह कर उसने बच्चों को अपने दोनों हाथों से बाँहों में समेट लिया और अब वो तीनों अपने आँसुओं को रोक नहीं पा रहें थे। आसपास के परिचित आए, कुछ निकट के रिश्तेदार भी और इस तरह प्रतिमा का अंतिम संस्कार हुआ। प्रतिमा तो अब जा चुकी थी।
सच तो यह था कि चाहे प्रतिमा कोमा में थी लेकिन पीयूष, निधि और निखिल को यह लगता था कि कुछ भी हो लेकिन प्रतिमा घर पर है। और आज.... सब कुछ उदास, एक खालीपन। इसी बीच निधि ने अपनी जिम्मेदारियाँ सँभाल ली थी। पीयूष ने गौर किया,प्रतिमा के जाने के बाद निधि कुछ ज्यादा ही समझदार हो गई है। सुबह पीयूष को समय पर चाय देना, घर में काम करने वाली नौकरानी को सारे काम के बारे में समझाना, सुबह-शाम प्रतिमा की तरह घर के पूजा-घर में दीपक जलाना,यह सब जैसे वह बिना कुछ कहे अपने आप ही करते जाती थी।
आज शाम जब पीयूष घर लौटा तो थोड़ी देर बाद पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी घर पर आए, निधि,पीयूष स्कूल से आ चुके थे। शर्मा जी को आया देख,निधि उनके लिए ट्रे में पानी ले आई। और उसने गॅस पर चाय चढ़ा दी। शर्माजी आए तो उन्होंने ड्रॉईंग रूम में यहाँ-वहाँ नज़रें घूमा कर देखा और पीयूष से कहा- अरे पीयूष जी क्या आपने प्रतिमा जी की फोटो नहीं लगाई? अभी-अभी तो उनकी मृत्यु हुई है, कम से कम उनकी तस्वीर लगा कर उस पर एक हार तो जरूर चढ़ाना चाहिए था,इससे उनकी आत्मा प्रसन्न रहती है। माँ का मरना वैसे भी बहुत दुखद होता हैं न पीयूष जी !
तभी निधि ट्रे में 2 कप चाय ले आई... पीयूष ने बड़े प्यार से अपनी बेटी को निहारा और शर्मा जी को कहा- लेकिन माएँ कभी मरा नहीं करती शर्माजी….