जीने के लिए रोटी
हँसने के लिए चाँद
चाहिए
चाँद छोड़ती हूँ
तो रोटी तो मिलती है
भूख नहीं लगती
रोटी छोड़ती हूँ
तो चाँद तो मिलता है
भूख नहीं मिटती
चाँद एक ख्वाब है
रोटी एक जरूरत
जरूरत पूरी की जाती है
खुशी नहीं देती
खुशी महसूस की जाती है
मिला नहीं करती
चाँद रोटी खा जाता है
रोटी चाँद
और मैं दोनों को खा जाती हूँ
आत्मघाती हूँ न
कोई चारा नहीं मेरे पास
जिंदगी चाँद से निकली
रोटी में घुस गई
रोटी से निकले चाँद में
चाँद का चक्रव्यूह है रोटी
रोटी का चाँद
दोनों घटते बढ़ते हैं
बस रोटी लेकर
मैं तकती रहती हूँ चाँद
शायद तुम भी
हम दोनों के पास
एक बंदर का पंजा है
जो पूरी करता है इच्छा
चाँद मांगो तो रोटी
छीन लेता है चाँद देकर
रोटी मांगो तो
चाँद छीन लेता है
कितनी तकलीफ से
निगलती हूँ तब रोटी
जब सात समंदर
पार होता है चाँद
जब रोटी नहीं होती
वही बन जाती है चाँद
हम ताजिंदगी यूँही
घूमते रहेंगे क्या
घड़ी के पेंडुलम की तरह
चाँद या रोटी
ध्रुव सत्य क्या है