तृषा तृप्ति के जलद घनेरे
और शब्द चातक बहुतेरे
गीत हुए ।
खंजन शुभ सन्देशा लाये ।
रूप खिसक दर्पन तक आये ।
रागों ने पहने आभूषण
आशाओं ने स्वप्न नचाये ।
छुअन कल्पना हुई वाष्पित
रिक्त रहे आलिंगन घेरे
गीत हुए ।
आभा रंजित कर प्रवाल में ।
रात खिली कुमुदिनी ताल में ।
अंशुमान ने रश्मि लुटाकर
लिया गूंथ कब रजत माल में ।
श्वेत पीत हरिताभ रंग वे
भीने हुए धूप के डेरे
गीत हुए ।
सुन्दर परिचय पट लहराना
टूटा संयम धनुष पुराना
महके फूल तीब्र जलधारा
तट पर बैठ निपट मुस्काना
रुके झुके संवाद नयन के
मन पर जिसने कथ्य उकेरे
गीत हुए ।
बन्द पलक में भी पहचाना ।
चारु चन्द्रिका का सहलाना।
विस्मित नभ यह धरा सुवासित
देख रहे रूठना मनाना।
पाशबद्ध वर्षा में भीगे
सघन अंधेरे धुले सबेरे
गीत हुए।
वर्णन के वर्णनातीत पल।
बंधी तनिक वर्णों में हलचल।
प्यासी साँस दहकता मरुथल,
निकट सुधा सरिता की कलकल।
पयफेनों से सिक्त बह गए
जो प्रमाण पट तेरे मेरे।
गीत हुए।