हमसे मौसम ने कहा हमने निकाली चादर
जिसमें पुरखों की बसी गंध संभाली चादर
दिन में पूरी थी मगर रात अधूरी - सी लगी
सिर पे खींची तो कभी पांव पे डाली चादर
मेरे आगे वो मंज़र आ रहे हैं।
वो ख़ुद चलकर मेरे घर आ रहे हैं।।
मैं सहराओं के जंगल मे खड़ा हूँ
सफीने पर बवण्डर आ रहे हैं।।
तुम दरबारों के गीत लिखो
मैं जन की पीड़ा गाऊँगा.
लड़ते-लड़ते तूफानों से
मेरे तो युग के युग बीते
कभी सोचा है स्त्री भी एक पौधा ही है --
पर स्त्री को नहीं दिया जाता है इतना सत्कार ...
एक पौधे को रोपने के बाद दिया जाता ...
खाद पानी और रौशनी भी ---
बादल आँख मिचोली खेले आंचल फटा बटोरे धूप
छप्पर आसमान सिर ढोए काल डस गया काया रूप ।
हौले पवन बुहारे आंगन द्वार देहरी एक समान ,
रिश्ते डूब गए पानी में अपनों ने छीनी मुस्कान।
अर्ज किया है...
जिन्दगी कुछ तो मशवरा दे दे
धुंध ही धुंध है शुआ दे दे। (1)
258, Metro Apartments,
Bhalaswa Metro Station
Delhi-110033
Phone: 9810234094, 9999566005
email: editor@rajmangal.com
सम्पादक मंडल
मुख्य सम्पादक : कंचन गुप्ता
साहित्य सम्पादक : डॉ पुष्पलता
सह सम्पादक : राजलक्ष्मी दूबे
रचना प्रेषित करें
राजमंगल टाइम्स में प्रकाशन हेतु कहानी, कविता, हास्य व्यंग्य, नाटक तथा अन्य साहित्य, संस्कृति, परिवार, स्वास्थ्य, पर्यटन, चित्रकला तथा बाल साहित्य से संबंधित हिंदी रचनाएँ आमंत्रित है।
प्रकाशन के लिए लेखक editor@rajmangal.com पर अपनी रचना ईमेल कर सकते हैं।