डाक्टर पुष्पलता अधिवक्ता बहुमुखी प्रतिभा की धनी एक सुपरिचित साहित्यकार हैं। उनका लेखन अनेक विधाओं में है।तीन खंड काव्य सहित उनकी लगभग बीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अभी हाल ही में उनका एक बाल उपन्यास प्रकाशित हुआ है "दूब का बंदा "सर्व प्रथम तो इसका नाम ही पाठकों को आकर्षित करता है।
यह उपन्यास पूर्ण रुपेण बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। छोटे छोटे बच्चों के साथ परिवार में माता- पिता के समक्ष और विद्यालय में अध्ययन के दौरान आने वाली समस्याओं का सूक्ष्मावलोकन कर उनका निदान भी बताया गया है और यह सब अधिकांशतः दादी के माध्यम से तो कभी प्रभु और नारद के बीच संवाद के रूप में है।
उपन्यास का नायक छोटा बालक राहुल है जो अपने दादू के पास अक्सर गांव जाता रहता है। वहां श्रीराम,मंगल और लच्छी बहुत निर्धन और बेसहारा बच्चे हैं जिनकी वह दोस्ती के नाते और मध में दयाभाव होने से अनेक बार मदद करता है।
विद्यालय में भी पढ़ाई के समय राहुल की संवेदनशीलता के अनेक गुण प्रकट होते हैं जैसे कि पक्षी प्रेम।
वह और उसके क ई दोस्त स्कूल के बाहर बिकने वाले पिंजरे में बंद तोते खरीदते हैं लेकिन घर पर मम्मी के समझाने पर कि आसमान में स्वछंद रुप से उड़ते पक्षी को कैद करना कितना बुरा है,वह अपने तोते को तो आजाद करता ही है वरन अपने दोस्तों के तोतों को भी पिंजरा खोलकर आकाश में उड़ा देता है और पक्षियों के प्रति अपनी इस दयालुता के कारण वह विद्यालय में पुरस्कृत भी होता है।
अपनी दादी से प्रतिदिन कहानी सुनना, जिसमें अच्छे कार्यों को करने की प्रेरणा का संदेश निहित होता है। अपने कथ्य को बच्चों के लिए और भी अधिक रोचक बनाने के लिए डाक्टर पुष्प लता ने प्रभु और नारद की बात चीत द्वारा सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है जिसमें नारद प्रश्न करते हैं और प्रभु समाधान करते हैं, जैसे बच्चों को पुरस्कार देकर पढ़ने के लिए प्रेरित करना,, हकलाने वाले बच्चे में आत्मविश्वास पैदा करना,कक्षा के अमीर बच्चों की देखा-देखी अपने माता-पिता से अनुचित मांग करना आदि जिसका प्रिसिंपल द्वारा ही उदाहरण देकर निवारण करना आदि है। गणेशजी के वाहन चूहे का प्रसंग जहां रोचकता प्रदान करता है, वहीं जीव जंतुओं पर होने वाली निर्दयता को भी दिखाता है और चूहों के द्वारा अपने ऊपर हो रहे अत्याचार का वर्णन कौरवी भाषा में होने के कारण लेखिका की इस पर मजबूत पकड़ को भी दर्शाता है।
पूरे ही उपन्यास में अनेक छोटी छोटी कहानियों के उदाहरण से अनेक जीवनोपयोगी संदेश दिए गए हैं जैसे सांप और साधु की कहानी से , अधिक विनम्र और अधिक परोपकारी न बनो , अपने सुख के लिए दूसरों के दुख का कारण न बनो आदि।
उपन्यास का शीर्षक अपनी सार्थकता तब सिद्ध करता है जब एक स्त्री को घास काटते समय एक विचित्र सी जड़ मिल जाती है जो अपने सम्पर्क में आने वाली प्रत्येक वस्तु की वृद्धि कर देती है लेकिन आगे जाकर उसके दुरुपयोग का अहसास होता है।
इस बाल उपन्यास में ईर्ष्या,कर्म न करके भाग्यवादी होना आदि नकारात्मक विकारों को कभी संत फ्रांसिस के द्वारा तो कभी किसी साधु के प्रवचन से दूर करने का प्रयास किया गया है।
उपन्यास का अंत लेखिका डॉ पुष्प लता नायक राहुल का राजनीति में प्रवेश के द्वारा करती हैं जो उपन्यास को सर्वथा एक अप्रत्याशित मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है। राहुल का राजनीति में प्रवेश केवल स्वच्छ राजनीति करने के उद्देश्य से ही दिखाया गया है क्योंकि उसके दादू भी विधायक थे और उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों के लिए अनेक लोकोपकारक और हितकारी कार्य किए थे,तब राहुल भी प्रतिज्ञा करता है कि वह अपने दादू का नाम ऊंचा करेगा और समाजसेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाएगा,साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करता है कि नेकी से बड़ा कोई बंदा नहीं " दूब का बंदा " भी नहीं।
इस प्रकार "दूब का बंदा" उपन्यास पूर्ण रूप से बाल मनोविज्ञान पर आधारित उपन्यास है जिसको अनेक सुंदर कहानियों द्वारा डाक्टर पुष्प लता जी ने बच्चों के लिए पठनीय तो बनाया ही है,साथ ही जीवन में अच्छी आदतों को अपनाने की प्रेरणा भी दी है।इस प्रकार लेखिका अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से सफल हुई हैं।
मैं आशा करती हूं कि " दूब का बंदा " उपन्यास का बाल जगत में भरपूर स्वागत होगा साथ ही साहित्य जगत में जो बाल साहित्य का अभाव है,उसको भी कुछ सीमा तक दूर करने में सफल होगा ।
अस्तु! लेखिका को मेरी अनन्त शुभकामनाएं,,,,