जो हमेशा बज़्म का हिस्सा रहे हैं
ये समझ लो उम्र भर तन्हा रहे हैं
तुम समझना चाहते हो रुख़ हवा का
हम हवा को रास्ता समझा रहे हैं
जानते हैं मंज़िलें सब हैं तुम्हारी
हम तो पैरों को महज़ बहला रहे हैं
हो चुकी है खोखली बुनियाद जिनकी
गुम्बदों पर वो महल इतरा रहे हैं
छोड़ कर जाते हुए जब तुम मुड़े थे
ज़िन्दगी भर हम वही लम्हा रहे हैं
तुम जहाँ मंज़िल समझ कर जश्न में हो
हम पड़ावों पर वहाँ सुस्ता रहे हैं