यह उस समय की बात है जब मैं एक राष्ट्रीय कृत बैंक में सेवारत था। जिस ब्रांच में मेरी पोस्टिंग थी वहां के स्टाफ में महिलाओं की संख्या अधिक थी। उस दिन आंगनवाड़ी की महिलाओं के खाते खुलने थे जिसके कारण बैंक का पूरा हॉल महिलाओं से भरा हुआ था।
उसी समय ब्रांच के अंदर एक रिटायर्ड फौजी का प्रवेश होता है और वह आकर मुझसे कहता है:---
"मेरा नाम सूबेदार दनदनाहट सिंह खुराना है,
क्या तुम्हारा बैंक जनाना है?
भाई हम तो यहां पहली बार आए हैं,
जिधर देखते हैं उधर महिलाएं ही महिलाएं हैं।
खैर, महिलाओं में हमें कोई इंटरेस्ट नहीं है,
मुझे तो एफडी के इंटरेस्ट में इंटरेस्ट है,
वह कितने पर्सेंट है,
यह बताइए,
और हमारी एक एफडी बनाइए।"
मैंने कहा "सर आप तो सीनियर सिटीजन है, आपको तो आधा परसेंट ब्याज अधिक मिलेगा,
खुश होने के बजाय फौजी साहब नाराज हो गए और कहने लगे
" बैंक वालों बहुत आगे बढ़ रहे हो,
बुढ़ापे के नाम पर केवल अठन्नी जड़ रहे हो।
मैं इतना मूर्ख नहीं कि औरों की तरह भूल कर लूं
और तुम्हारी अठन्नी के चक्कर में बुढ़ापा कबूल कर लूं
हम जवान थे,
जवान हैं,
और जवान बंद होने तक, जवान ही रहेंगे।
और भी ग्राहक आ रहे थे जा रहे थे
और हम सब लोग सूबेदार को समझा रहे थे,
तभी एक 70 साल की ताई,
लगाकर गोदरेज हेयर डाई,
बैंक में आई,
और कहने लगी '" म्हारा खाता देख कर बता पेंशन आई कि नहीं आई?
हमने कहा "ताई इस फौजी की वजह से वैसे ही दिमाग में टेंशन है
फिर भी चल तू बता तेरी किस बात की पेंशन है?
कहने लगी " विधवा हूं"
यह बात उसने कुछ इस प्रकार कहीं जैसे कोई राष्ट्रीय अवार्ड उसने हासिल कर रखा हो।
मैंने भी सहज भाव से पूछ लिया " ताई तू विधवा कैसे हो गई?
ताई कहने लगी " बाबूजी, मुझे तो मेरा घर वाला ही विधवा कर गया।"
मैंने कहा " री ताई, यह ड्यूटी तो घरवाले की ही होती है क्या कोई दूसरा आदमी भी विधवा कर सकता है क्या?
ताई बोली " बाबूजी आप तो बहुत पीछे रह गए अब तो लोग बहुत तरक्की कर गए।
विधवा होने के लिए अब पति का मरना जरूरी नहीं है।
समाज का कल्याण करने वाला एक विभाग है उसमें एक बहुत ही भला बाबू है जो केवल ₹5000 रुपये में पांच मिनट के अन्दर
विधवा बनाकर 5 दिन में पेंशन खाते में पहुंचा देता है।
मैंने कहा " ताई क्या तू भी इसी प्रकार बनी हुई विधवा है?
वह कहने लगी " बाबू जी मैं तो बहुत मेहनती हूं और अपनी मेहनत से ही बनी हुई हूं।
मेरी बहुत सी जानने वाली महिलाएं हैं जो उस बाबू जी द्वारा बनाई गई विधवा हैं।
म्हारे गांव में असली गरीब तो सरकारी मापदंडों में फेल हो गए
और पैसे वाले लोग बीपीएल हो गए।
जो लोग रिश्वत दे रहे हैं
40 साल की उम्र में ही वृद्धावस्था पेंशन ले रहे हैं।
बाबूजी, मैंने सुना है शास्त्रों में यह बात लिखी हुई है
कि यह पृथ्वी एक बहुत बड़े सांप की खोपड़ी पर टिकी हुई है।
कुछ इंसानों में शायद उसी का असर है।
मैं सोचने लगा कि भारत में इस तरह के न जाने कितने इंसान हैं
लगता है इन्हीं के कारण यह देश महान है।