लंदन। ब्रिटेन की सरकार ने भारत के साथ वैक्सीन साझेदारी की सराहना की। यह साझेदारी उप-सहारा अफ्रीका में बच्चों की सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी मलेरिया से निपटने में मदद कर रही है। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों और भारत के निर्माताओं के बीच सहयोग से जीवन रक्षक मलेरिया टीके (आरटीएस, एस और आर-21) विकसित किए। इन टीकों का इस्तेमाल घाना, केन्या और मलावी में किया गया।
2019 से 20 लाख बच्चों का टीकाकरण किया गया और जनवरी में कैमरून बच्चों को नियमित रूप से टीके देने वाला पहला देश बन गया।
अफ्रीका में 60 लाख से ज्यादा बच्चों का होगा टीकाकरण
इसको लेकर विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (एफसीडीओ) में हिंद-प्रशांत मामलों की ब्रिटेन की राज्य मंत्री एनी-मैरी ट्रेवेलियन ने कहा, वैज्ञानिकों के लिए दोनों टीके महत्वपूर्ण सफलता है। उन्होंने कहा, 2025 के अंत तक 60 लाख से ज्यादा बच्चों का टीकाकरण करने के लिए दोनों टीके पूरे अफ्रीका में लगाए जा रहे हैं। ट्रेवेलियन ने कहा, यह मलेरिया के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक बड़ा कदम है और यह ब्रिटेन-भारत की मजबूत साझेदारी के बिना संभव नहीं होता।
दो टीकों का पहला रोलआउट शुरू करेंगे तीन देश
विश्व मलेरिया दिवस के मौके पर गुरुवार को एफसीडीओ ने एलान किया कि सिएरा लियोन, लाइबेरिया और बेनिन ब्रिटेन-भारत की साझेदारी से विकसित किए गए आरटीएस, एस टीकों का पहला रोलआउट शुरू करेंगे, जो मलेरिया को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। वहीं, लंदन में भारतीय उच्चायोग ने कहा, यह भारत और ब्रिटेन के सहयोग में सफलता की एक और कहानी है। दो मलेरिया के टीकों के विकास और निर्माण का साझा प्रयास है।
टीकों का बड़े पैमाने पर निर्माण कर रहीं भारतीय कंपनियां
ब्रिटेन अभी आरटीएस, एस मलेरिया टीकाकरण के रोलआउट का समर्थन कर रहा है। कुल 22 देशो को टीके लगाने की मंजूरी मिल गई है। इसका लक्ष्य 2025 के अंत तक 60 लाख से ज्यादा बच्चों को मलेरिया से बचाना है। दो मलेरिया टीके जीएसके और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों ने विकसित किए हैं। इन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंजूरी मिल चुकी है। अब भारतीय दवा कंपनियां बड़े पैमाने पर इनका निर्माण कर रही हैं। जीएसके के टीके आरटीएस, एस का उत्पादन भारत बायोटक कर रहा है, जबकि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नए आर-21 टीके का उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा किया जा रहा है।