न ही शब्द थे न ही जिस्म थे
एहसास थे बस भाव थे
कभी पेड़ की एक छाँव में
रूककर जरा सुस्ता लिए
पर पेड़ ने कुछ न कहा
हमने जरा मुस्करा दिया
वो सख्त शाखा चूमकर
कुछ भी नहीं कोई नहीं
पर हाँ कोई एहसास था
जो रूह तक को छू गया
शायद वो शायद प्यार था
एक रूख का इन्सान का
जब -जब गली में चल पड़े
एक साथ आगे हो चला
यूँ ही जरा सा हँस दिए
जाने मगर किस भाव से
दिल भर गया आनंद से..
शायद वो भी एक प्यार था
बिन प्यार के सब अजनबी
है प्यार तो परिचय बहुत
ये प्यार का ही भाव है
अपनी गली के पेड़ की
यादें भी दिल में बस गईं
धरती का मेरे पैर से
होता रहा संवाद है
शायद तभी तो ये हुआ
धरती घटी न पग थके