चंद्रयान 3 की सफलता के बाद केंद्र सरकार ने अब स्वास्थ्य क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों को नया टास्क सौंपा है। जो दुनिया में पहले कभी किसी ने नहीं किया हो, वह अब भारत इस टास्क के जरिये पूरा करेगा। यानी जिन बीमारियों का इलाज कोई नहीं ढूंढ़ पाया उसे भारतीय वैज्ञानिक ढूंढेंगे।
इसके लिए सरकार ने विश्व में प्रथम चुनौती लक्ष्य भी तय किया है जिसकी जिम्मेदारी नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र (आईसीएमआर) को सौंपी है।
सरकार की इस नई पहल में देश के सभी सरकारी शोध और चिकित्सा संस्थान को साथ मिलकर काम करना होगा। बीते सप्ताह आईसीएमआर ने सभी संस्थान के लिए एक पत्र भी जारी किया है जिसमें कहा है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरे चंद्रयान 3 से प्रेरित होकर दुनिया में पहली बार भारत एक ऐसी पहल करने जा रहा है जिसके तहत वैज्ञानिकों को नए और लीक से हटकर विचारों पर काम करने का मौका मिलेगा।
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हर शोध पर 30 करोड़ तक खर्च की योजना
इस पहल में उच्च जोखिम हो सकता है, लेकिन सफलता मिली तो यह पुरस्कार भी काफी बड़ा होगा। विश्व में प्रथम चुनौती नामक इस पहल को लेकर आईसीएमआर ने यहां तक कहा है कि सफलता की संभावनाएं परिवर्तनशील हो सकती हैं, लेकिन आईसीएमआर इसे जोखिम लेने लायक मानता है। शोध संस्थानों से मांगे प्रस्ताव में आईसीएमआर ने प्रत्येक शोध पर करीब 30 करोड़ रुपये तक खर्च करने की योजना बनाई है जिसमें बीमारी के इलाज से लेकर जांच तकनीक और टीका की खोज तक शामिल है।
लीक से हटकर होगी खोज
आईसीएमआर का कहना है कि यह हमारे वैज्ञानिकों को जटिल बीमारियों के समाधान खोजने के लिए नवीन विचारों को प्रेरित करेगा। इस पहल का उद्देश्य लीक से हटकर, भविष्यवादी विचारों, नए ज्ञान सृजन और खोज को बढ़ावा देना है जिनके टीके, औषधियां-उपचार, निदान मिलेंगे जिनके बारे में दुनिया में आज तक न सोचा और न ही आजमाया गया है। आईसीएमआर के मुताबिक, अगले कुछ सप्ताह में सभी प्रस्तावों को एकत्रित करने के बाद समिति इनका मूल्यांकन करेगी और उसके बाद अंतिम प्रस्तावों पर शोध शुरू होंगे जिन्हें अधिकतम तीन वर्ष में पूरा करना होगा। इस पहल में सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज, देश के शीर्ष चिकित्सा संस्थानों के साथ साथ दिल्ली सहित सभी एम्स, आईसीएमआर के सभी संस्थान के अलावा यूजीसी, एआईसीटीई और एनएमसी में पंजीकृत संस्थानों के शोधकर्ता शामिल हो सकते हैं।