नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी की जमानत याचिकाओं पर निर्णय करते समय धन शोधन निरोधक कानून में निर्धारित दोहरी शर्तों पर विचार करना जरूरी है।
अपराध की गंभीरता और पीएमएलए की धारा 45 की कठोरता पर विचार किए बिना गुप्त आदेश पारित करके मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में आरोपी व्यक्तियों को जमानत देना उचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी की जमानत याचिकाओं पर निर्णय करते समय धन शोधन निरोधक कानून में निर्धारित दोहरी शर्तों पर विचार करना जरूरी है। अपराध की गंभीरता और पीएमएलए की धारा 45 की कठोरता पर विचार किए बिना गुप्त आदेश पारित करके मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में आरोपी व्यक्तियों को जमानत देना उचित नहीं है। पीठ ने पटना हाईकोर्ट के मई 2024 के जमानत वाले आदेश को खारिज कर दिया।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी व जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा, पीएमएलए की धारा 45 में दोहरी शर्तों के अनुसार अभियोजक को जमानत याचिका का विरोध करने का मौका मिलना चाहिए। दूसरा, अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी दोषी नहीं है इसके पर्याप्त आधार हैं और जमानत पर वह कोई अपराध नहीं कर सकता। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि शर्तें अनिवार्य प्रकृति की हैं और आरोपी को जमानत पर रिहा करने से पहले उनका अनुपालन किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि यह अब कोई नई बात नहीं है कि मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध आपराधिक आय से जुड़ी प्रक्रिया या गतिविधि के संबंध में एक स्वतंत्र अपराध है। आपराधिक आय से जुड़ी किसी भी प्रक्रिया या गतिविधि में शामिल होना मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध माना जाएगा। पीठ ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि धारा 45 (अधिनियम की) की दो शर्तों पर विचार करना अनिवार्य है। जमानत आवेदन पर विचार करते समय, पीएमएलए के उद्देश्यों को बनाए रखने के लिए धारा 45 की कठोरता को अदालत को ध्यान में रखना चाहिए।
कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के मई 2024 के फैसले को खारिज कर दिया। साथ ही इसे नए सिरे से विचार करने के लिए वापस भेज दिया गया। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने धारा 45 की कठोरता पर विचार किए बिना बहुत ही लापरवाही से आरोपी को बिल्कुल असंगत और अप्रासंगिक आधार पर जमानत दे दी। मनी लॉड्रिंग के अपराध को मामूली प्रकृति का नहीं माना जा सकता। पीठ ने आरोपी को एक सप्ताह के भीतर विशेष अदालत में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।