नई दिल्ली। विश्लेषक बताते हैं कि आतिशी और गोपाल राय के अलावा शीर्ष नेतृत्व साफ हो गया है। पार्टी पहली बार विपक्ष में बैठ रही है। केजरीवाल और सिसोदिया पार्टी के विधानमंडल और दो बड़े नेताओं से किस तरह डील करेंगे, इससे यह तय होगा कि पंजाब में किस तरह से पार्टी काम करेगी
करारी हार के बाद आप के भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं। खासकर इसलिए कि चुनावी शिकस्त से शीर्ष नेतृत्व की वैधानिक शक्ति कमजोर हुई है। सत्ता की यह कमजोरी पार्टी के भीतर से संकट पैदा कर सकती है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बगैर किसी विशेष विचारधारा वाली व्यक्ति केंद्रित पार्टी आप के लिए आने वाले महीने संकट भरे होंगे। इसमें नेतृत्व के लिए आप को संभाल पाना चुनौती भरा होगा। आशंका इस बात की भी जाहिर की जा रही है कि कहीं इसका हस्र जनता दल और असम गण परिषद सरीखा न हो जाए। राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि विविधता से भरे देश में किसी राजनीतिक दल का वजूद मजबूत हाईकमान, उसकी विचारधारा और जमीनी स्तर तक का मजबूत संगठन जरूरी है।
राज्यों में सरकार होने के बाद भी कांग्रेस जैसी पार्टी आज अगर संघर्ष कर रही है तो उसके पीछे उसमें राजनीतिक संपदा और दक्षता का अभाव होना है। फिर भी मजबूत इच्छा शक्ति से भरा शीर्ष नेतृत्व तमाम संकटों के बाद भी कांग्रेस को खड़ा रख सका है।
दूसरी तरफ मजबूत वैचारिक आधार के साथ पीएम को नेतृत्व ने भाजपा को पूरे देश में विस्तार दिया है। दिलचस्प यह कि ढाई दशक से शीर्ष पद संभालने वाले पीएम मोदी पर निजी स्तर पर भ्रष्टाचार का कोई दाग भी नहीं लगा है।
उन्हें पार्टी से किनारे किया, जिनमें आत्मचिंतन की शक्ति थी : डॉ. चंद्रचूड़
राजनीतिक विश्लेषक और दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफेसर डॉ. चंद्रचूड़ सिंह बताते हैं कि देश को वैकल्पिक राजनीति दिलाने का वादा करके राजनीतिक पार्टी बनाने वाले अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने उन्हीं प्रतिमानों को खुद ही खत्म किया, जिनकी नींव पर पार्टी टिकी थी।
सियासी उत्तरदायित्व, शुचिता व नैतिकता, ग्रास रूट से कार्यकर्ताओं को मिलने वाली जिम्मेदारी सरीखे दूसरी कई सारी चीजें पार्टी में गायब हैं। वहीं, उन लोगों को भी पार्टी से किनारे किया गया, जिनमें आत्म चिंतन की शक्ति थी, मर्यादित आवाज थी, नैतिक व बौद्धिक पूंजी थी। पार्टी का मौजूदा शीर्ष नेतृत्व से भी नैतिकता का आवरण हट गया है।
शीर्ष नेतृत्व साफ, पार्टी संभालना होगा मुश्किल
विश्लेषक बताते हैं कि आतिशी और गोपाल राय के अलावा शीर्ष नेतृत्व साफ हो गया है। पार्टी पहली बार विपक्ष में बैठ रही है। केजरीवाल और सिसोदिया पार्टी के विधानमंडल और दो बड़े नेताओं से किस तरह डील करेंगे, इससे यह तय होगा कि पंजाब में किस तरह से पार्टी काम करेगी।
दिल्ली में अगर नेता प्रतिपक्ष को आप का शीर्ष नेतृत्व छूट देता है तो पंजाब की सरकार, उसके मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक भी अपेक्षा करेंगे। यह पार्टी के भीतर हितों में टकराव पैदा कर सकता है। केजरीवाल की सबसे पहली चुनौती यही होगी। विपक्ष से निपटना तो बाद की बात है।