मार्वल। सिनेमैटिक यूनिवर्स के दर्शक बीते 25 साल में बड़े हुए वे युवा हैं जिनको हिंदी सिनेमा से ज्यादा पश्चिमी सिनेमा में रुचि है। वे हॉलीवुड फिल्में उनकी बेहतरी और उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता के अलावा इन फिल्मों के बोल्ड सियासी रुख के चलते भी देखते हैं।
वहां राष्ट्रपति भवन को धमाके में उड़ाया जाते दिखाना आम बात है। वहां के राष्ट्रपति पर जानलेवा हमला भी फिल्मों में खूब दिखाया जा चुका है। लेकिन, इस बार फिल्म ‘कैप्टन अमेरिका-ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ में एक नई बात हुई है। इस फिल्म में भारतीय प्रधानमंत्री को विश्व के शक्तिशाली लीडर के रूप में दिखाया गया है। वैश्विक संकट में अमेरिका के राष्ट्रपति को भारतीय प्रधानमंत्री से सलाह लेते दिखाया गया है और उनकी डांट भी खाते दिखाया गया है। ये ही नया इंडिया है। दुबला-पतला स्टीव रोजर्स कैसे बना कैप्टन अमेरिका, क्यों फाल्कन को सौंपी अपनी शील्ड
दो घंटे की बढ़िया पॉलिटिकल थ्रिलर
बदलते भारत की बुलंद तस्वीर दिखाती फिल्म है, ‘कैप्टन अमेरिका-ब्रेव न्यू वर्ल्ड’। कहानी एमसीयू के अगले अध्याय से ज्यादा एक राजनीतिक रोमांच फिल्म जैसी है। थैसियस रॉस अमेरिका का राष्ट्रपति बन चुका है। वह नए कैप्टन अमेरिका यानी सैम विल्सन के साथ मिलकर काम करना चाहता है। हिंद महासागर में धरती की कोख से उभरे एक द्वीप पर वकांडा की वाइब्रैनियम से भी ज्यादा शक्तिशाली धातु निकली है। जापान इस पर अपना कब्जा जमाना चाहता है, लेकिन अमेरिका चाहता है कि इसमें पूरी दुनिया की हिस्सेदारी हो। अंतर्राष्ट्रीय सियासत दिखाती अमेरिकी फिल्मों में अब तक जो काम रूस के हवाले होता था, इस बार उस पाले में जापान है। भारत अब ऐसा देश है जिसका समर्थन अमेरिका चाहता है। बदले वैश्विक समीकरणों को पहली बार दमदार तरीके से दिखाती फिल्म ‘कैप्टन अमेरिका-ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ को एमसीयू की 35वीं फिल्म के तौर पर न भी देखें तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता, हां फिल्म के एंड क्रेडिट रोल्स में कहानी का अगला सिक्सर जड़ा गया है और वहीं से ये फिल्म मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की नई दुनिया बसाने की कोशिश करने वाली पहली फिल्म बन जाती है।
नए एवेंजर्स की शुरू हो गई तलाश
ये तो अब सर्वविदित है ही कि मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स की ‘एवेंजर्स एंडगेम’ के बाद की दुनिया काफी बिखरी बिखरी सी रही है। मार्वल स्टूडियोज ने उसके बाद तमाम कोशिशें की कि लोग आयरमैन को भूल जाएं। हल्क को याद न करें। कैप्टन अमेरिका के रूप में स्टीव रोजर्स के रिटायरमेंट पर इमोशनल न हों, लेकिन ये हो न सका। दर्शकों ने इस दुनिया में इतना बड़ा भावनात्मक निवेश कर रखा है कि उनको फिर से इस दुनिया की तरफ खींचकर लाने के लिए नए कैप्टन अमेरिका को अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ नए एवेंजर्स तलाशने के मिशन के लिए हां करते हुए फिल्म ‘कैप्टन अमेरिका-ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ में दिखाना ही पड़ा। ये फिल्म ज्यादा इमोशन पर न खेलते हुए, एक्शन और ड्रामा पर खेलती है। राष्ट्रपति को मारने की साजिश रचने वालों का पर्दाफाश करते करते कहानी उन सनातनी पौराणिक कथाओं की तरफ निकल जाती है जिसमें भस्मासुर जैसे दानव की कल्पना की गई है जो मोहिनी के मोह में अपने सिर पर हाथ रखकर खुद ही भस्म होता है।
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वो जो जो इक शख्स यहां तख्त नशीं था..
फिल्म ‘कैप्टन अमेरिका-ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ अहंकारों के चूर चूर होने की भी कहानी है। अक्सर सामान्य जीवन में भी कुछ लोग सत्ता पाने के बाद खुद को सर्वगुण और सर्वशक्ति सम्पन्न समझ लेते हैं। और, ओहदा अगर अमेरिका के राष्ट्रपति का मिल जाए तो फिर कहना ही क्या? लेकिन जैसे भारतीय कहानियों में लालची राजा की जान पिंजड़े में बंद एक तोते में होती है, वैसे ही यहां अमेरिकी राष्ट्रपति की जान उसे खिलाई जा रही उन गोलियों में होती है जिसे वैज्ञानिक सैमुअल स्टर्न्स ने डिजाइन किया है। ‘द इनक्रेडिबल हल्क’ का ये जैव वैज्ञानिक याद है न आपको? खैर नहीं भी याद हो तो खास फर्क नहीं पड़ता। ‘कैप्टन अमेरिका-ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ देखने के लिए आपको एमसीयू का सिलेबस याद होने की कोई जरूरत नहीं है। हां, बकी के परदे पर दिखने पर बाकी दर्शक जो सीटियां बजाएंगे, उसका मतलब शायद आप न समझ पाएं लेकिन इससे ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं क्योंकि ये फिल्म पूरी तरह से एंथनी मैकी की है।
मैकी पर लगा कैप्टन अमेरिका का ठप्पा
अभिनेता एंथनी मैकी ने खुद को तन और मन दोनों से कैप्टन अमेरिका मान लिया है और ये विश्वास उनके चेहरे के साथ साथ पूरी देहयष्टि में दिखने लगा है। ध्यान यहां ये रखना है कि इस कैप्टन अमेरिका को जादुई सीरम नहीं मिला है। वह साधारण इंसान है जो अपनी असाधारण इच्छा शक्ति और कुछ तकनीकी उपकरणों के सहारे दुनिया बचाने निकला है। क्लाइमेक्स में कैप्टन अमेरिका और फाल्कन की लंबी बातचीत इस फिल्म का असली मर्म है। कैप्टन अमेरिका कहता है कि लोग सराहें या न सराहें, पर कुछ लोग हमेशा इस दुनिया में हर सिस्टम में ऐसे रहे हैं और रहेंगे जिनके होते कुछ गलत न हो पाने की उम्मीद बाकी लोगों को बनी रहती है। ऐसे लोगों को अपना सब कुछ निछावर करके भी ये काम करते रहना होता है, यही उनकी नियति है। और, इसीलिए निर्देशक जूलियस ओनाह ने कहानी का विलेन एक ऐसे वैज्ञानिक को बनाया है जो लोगों के दिमाग नियंत्रित करता है।
एमसीयू के रेड हल्क में फिल्म की पूरी जान
मार्वल सिनेमैटिक यूनिवर्स में एक नई लीक खींचने की कोशिश करती फिल्म ‘कैप्टन अमेरिका-ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ की कहानी और पटकथा थोड़ी और रोचक होती तो इसे देखने वालों का आनंद बढ़ सकता था। अभी चूंकि कहानी एक ही क्षैतिज दिशा में सीधे बढ़ती जाती हैं और विश्वयुद्ध की कगार पर आकर थम सी जाती है, तो इसमें कोई खास नयापन दर्शकों को नहीं दिखता। दूसरी एक कमजोरी फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक और एक्शन हैं। एक्शन दृश्यों में लड़ाकू विमानों के करतब तो भारतीय दर्शकों ने यहां अपनी देसी फिल्मों में इतने देख लिए हैं कि ‘तेजस’, ‘फाइटर’, ‘ऑपरेशन वैलेनटाइन’ और ‘स्काईफोर्स’ सबका स्वाद एक जैसा हो चला है। इन कमजोरियों के बावजूद ‘कैप्टन अमेरिका-ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ को अपने कलाकारों से मजबूत सहारा मिलता है। 82 साल के हो चले हैरीसन फोर्ड का प्रेस कांफ्रेंस के बीच में ही अमेरिकी राष्ट्रपति से रेड हल्क में बदलना फिल्म का सबसे रोचक और सांसें रोक देना वाला दृश्य बन पड़ा है। ये पूरा एक्शन सीक्वेंस ही टिकट का पूरा पैसा वसूल करा देने में सक्षम हैं। एमसीयू की बीते साल की तमाम हल्की फिल्मों से ये फिल्म बेहतर बन पड़ी है सबसे खास बात ये है कि ये एमसीयू की एक नई दर्शक पीढ़ी तैयार करने की कोशिशों का संकेत देती है।