नई दिल्ली । दुनिया भर में पानी की समस्या धीरे-धीरे और गहराने लगी है। पिछले 75 वर्षों के दौरान भू-जल स्तर खतरनाक ढंग से करीब 55 फीसदी गिर गया है। इससे शुद्ध पेयजल का संकट बढ़ जाएगा और सबसे ज्यादा असर ग्लोबल साउथ की आबादी पर पड़ेगा।
नीदरलैंड स्थित यूट्रेक्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि स्वच्छ पानी की कमी मनुष्य और पारिस्थितिक तंत्र दोनों के लिए एक बहुत बड़े खतरे का संकेत है। इसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं है। अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि हमारी पानी की मांग को काफी हद तक कम करने के साथ-साथ, हमें दुनिया भर में पानी के संकट पर काबू पाने के लिए जल प्रदूषण को खत्म करने पर भी उतना ही अधिक ध्यान देना होगा। अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में खासतौर पर बढ़ते साफ पानी के संकट पर ध्यान केंद्रित किया है। ग्लोबल साउथ देशों में मुख्य रूप से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरिबियन, एशिया (इजरायल, जापान, दक्षिण कोरिया को छोड़कर) और ओशिनिया (ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड को छोड़कर) शामिल हैं।
भविष्य में और बढ़ेगी परेशानी
दुनिया भर में पानी की कमी के और बढ़ने का अनुमान है। बदलाव और प्रभाव दोनों ही विश्व के सभी क्षेत्रों में समान रूप से नहीं होंगे। उदाहरण के लिए, पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में पानी की कमी साल के कुछ ही महीनों होती है। इसके विपरीत विकासशील देशों में पानी की कमी आमतौर पर बहुत ज्यादा होती है और साल में अधिकतर बनी रहती है।
गड़बड़ाएगी पानी की गुणवत्ता
भविष्य में पानी की गुणवत्ता गड़बढ़ा जाएगी। आमतौर पर तेजी से बढ़ती जनसंख्या और आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन और पानी की बिगड़ती गुणवत्ता के कारण ऐसा हो सकता है। अध्ययन के अनुसार पानी की गुणवत्ता, सुरक्षित पानी के उपयोग के लिए जरूरी होने के बावजूद इस ओर कम ध्यान जाता है। पिछले आकलन मुख्य रूप से पानी की मात्रा के पहलुओं पर ही ध्यान आकर्षित करते हैं। लेकिन पानी का सुरक्षित उपयोग गुणवत्ता पर विशेष रूप से निर्भर करता है।