सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही हत्या के इरादे के अलावा अन्य तत्व भी साबित हो जाएं, लेकिन घातक कार्यों के परिणाम का पहले से पता होना ही आरोपी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जब न्यूनतम सजा ही आजीवन कारावास हो तो समानता, उदारता, वृद्धावस्था और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के आधार पर सजा में कमी की मांग नहीं की जा सकती।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने 2006 में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के एक कार्यकर्ता की हत्या के मामले में संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) समर्थक की दोषसिद्धि व उम्रकैद की सजा बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने दोषी की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि न तो उसका इरादा हत्या करना था और न ही उसने इसकी कोई पूर्व योजना बनाई थी, बल्कि निजी बचाव में यह अपराध हो गया। पीठ ने कहा कि ऐसी चोट पहुंचाने की मंशा जो प्रकृति के सामान्य क्रम में मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त है, हत्या के इरादे के रूप में योग्य है। शीर्ष कोर्ट ने 11 अप्रैल, 2006 को सुब्रह्मण्यम की हत्या से जुड़े मामले में आईयूएमएल समर्थक कुन्हीमुहम्मद उर्फ कुन्हीथू की ओर से दायर अपील खारिज कर दी। 6 दिसंबर के फैसले में कोर्ट ने कहा, अपराध राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में हुआ, जो एक ऐसा कारक है जिसने इसकी गंभीरता को और बढ़ा दिया।
हाईकोर्ट की सजा को बरकरार रखा
शीर्ष कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के 18 सितंबर, 2018 के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें ट्रायल कोर्ट की ओर से आरोपी को दोषी ठहराने की पुष्टि की गई थी। अपीलकर्ता ने दावा किया था कि यह घटना दो प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच हाथापाई से शुरू हुई। हत्या पूर्व नियोजित नहीं थी, बल्कि क्षणिक आवेश में आकर यह घटना घटित हुई। उसने दावा किया था कि उसका हत्या करने का इरादा नहीं था।
पीठ ने दोषी की कोई दलील नहीं मानी
दोषी की दलीलों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि इरादे का अनुमान घटना के आसपास की परिस्थितियों से लगाया जा सकता है, जिसमें चोटों की प्रकृति और स्थान, इस्तेमाल किया गया हथियार और घटना के दौरान अपीलकर्ता की हरकतें शामिल हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि जानबूझकर किए गए आपराधिक कृत्य से अपीलकर्ता को अपने कार्यों के संभावित घातक परिणामों के बारे में पता होना चाहिए।
चुनाव चिह्न को लेकर हुआ था विवाद
यह हमला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के कार्यकर्ताओं के बीच एक दिन पहले उनके चुनाव चिह्न के विवाद के सिलसिले में हुई लड़ाई का नतीजा था। मृतक पर डंडे से हमला हुआ था, लेकिन वह डंडा छीनकर हमलावर को पीटने लगा। इस पर दोषी ने चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर उसकी हत्या कर दी थी। मृतक के छाती के बाएं हिस्से, सिर के पीछे और बाएं कंधे पर चाकू के हमले के कई निशान पाए गए थे।
राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से जुड़े अपराधों के अक्सर जीवन की हानि से परे दूरगामी नतीजे होते हैं, जो सामाजिक अशांति का कारण बनते हैं और कानून के शासन में जनता के विश्वास को कमजोर करते हैं। इसलिए न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके निर्णय जवाबदेही के सिद्धांत को सुदृढ़ करें और ऐसे हिंसक कृत्यों की पुनरावृत्ति को रोकें।