नई दिल्ली । आज शारदीय नवरात्रि की षष्ठी तिथि है। आज के दिन से ही दुर्गा पूजा का आगाज हो जाता है। इसके साथ ही नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दुर्गा मां के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
इसके साथ ही सुख समृद्धि में भी वृद्धि होती है। पुराणों के अनुसार, देवी कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री थीं । इसीलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। एक अन्य मान्यता यह भी है कि गोपियों ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए मां कात्यायनी की आराधना की थी। तभी से ऐसा कहा जाता है कि जो भी कन्या मां की पूजा करती है उसे मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। इसी क्रम में जानते हैं मां के छठे स्वरूप , उनकी पूजा विधि, मंत्र, आरती से लेकर भोग तक की पूरी जानकारी।
षष्ठी तिथि-
षष्ठी तिथि आरंभ: 8 अक्तूबर, मंगलवार प्रातः 11:17 पर
षष्ठी तिथि समाप्त: 9 अक्तूबर, बुधवार दोपहर12:14 पर
मां कात्यायनी का स्वरूप
मां दुर्गा का कात्यायनी स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है । वे ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां सिंह पर सवार हैं और इनकी चार भुजाएं हैं, इनमें से दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है वहीं नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। जबकि, बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प है। ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह का सम्बन्ध इनसे माना जाता है।
मां कात्यायनी भोग
मां कात्यायनी को शहद या मीठे पान का भोग लगाना बेहद शुभ माना गया है। माना जाता है कि इससे व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नहीं सताता।
प्रिय फूल और रंग
देवी कात्यायनी का प्रिय रंग लाल है। पूजा में आप मां कात्यायनी को लाल रंग के गुलाब या गुड़हल का फूल अर्पित करें इससे मां कात्यायनी प्रसन्न होंगी।
पौराणिक कथा
विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की। उन्होंने देवी के समक्ष अपनी इच्छा रखी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय पश्चात जब पृथ्वी पर महिषासुर नाम के असुर का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश दिया जिससे एक देवी प्रकट की। सर्वप्रथम महर्षि कात्यायन ने देवी की पूजा की और फिर वे इनकी पुत्री कात्यायनी कहलाईं। इन देवी का प्रादुर्भाव महिषासुर के विनाश के लिए ही किया गया था।
पूजा विधि
मां कात्यायनी के पूजन से पहले कलश पूजा का विधान है। कलश गणेश जी का स्वरूप माने जाते हैं।
स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ कपड़े पहनें ।
अब गणेश जी को फूल, अक्षत आदि अर्पित कर तिलक लगाएं।
उन्हें मोदक भोग लगाएं और पूरे विधि विधान से पूजा करें।
इसके बाद आप नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता की पूजा भी करें।
इसके बाद ही आप माता कात्यानी की पूजा करें।
कात्यानी देवी की पूजा के लिए अपने एक हाथ में एक फूल लेकर मां कात्यायनी का ध्यान करें।
इसके बाद माता को फूल चढ़ाएं और अक्षत, कुमकुम और सिंदूर अर्पित करें।
माता को भोग लगाएं।
साथ ही माता के समक्ष घी का दीया अवश्य ही जलाएं।
पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करें और अंत में मां की आरती करें।
पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
.द्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||
मां कात्यायनी की आरती
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी। जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहां वरदाती नाम पुकारा।
कई नाम हैं, कई धाम हैं। यह स्थान भी तो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी। कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली। अपना नाम जपाने वाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो। ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे।