नई दिल्ली । देश में लगभग पांच फीसदी बच्चे और किशोर किडनी, गुर्दे के सही से काम न करने या खराब किडनी फंक्शन से पीड़ित हैं। राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में सामने आया है कि किडनी को नुकसान पहुंचने से जैसे-जैसे समय बीतता है यह समस्या और भी जटिल और लाइलाज हो जाती है।
बाद में यह धीरे-धीरे क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के रूप में तब्दील हो जाती है। यह अध्ययन बठिंडा और विजयपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से किया है। इसके नतीजे स्प्रिंगर लिंक नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इसका प्रमुख कारण क्या है और इससे कितने बच्चे पीड़ित हैं, इसके सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। यह अध्ययन 2016 से 18 के बीच पांच से 19 वर्ष की आयु के 24,690 बच्चों और किशोरों के राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण पर आधारित है। सर्वेक्षण के अनुसार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक मामले सामने आए, जबकि तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, राजस्थान और केरल में यह प्रचलन कम था।
ज्यादातर को बीमारी का पता नहीं
अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक, 10 लाख की जनसंख्या पर लगभग 49 हजार बच्चे और किशोर (4.9 फीसदी) किसी न किसी रूप में किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं। आश्चर्यजनक रूप से इन लोगों में से आधे से अधिक लोगों और उनके अभिभावकों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह समस्या अधिकतर ऐसे इलाकों में है, जहां स्वास्थ्य संबंधी अच्छी सुविधाओं की पहुंच लगभग नगण्य है। जिन लोगों को इस समस्या की जानकारी है उनका इलाज भी अधिकतर हकीमों के भरोसे है।
मुख्य समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में
राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के अनुसार, यह समस्या मुख्य तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पाई गई। अभिभावकों खासतौर से माताओं में शिक्षा की कमी, बच्चों और किशोरों का शारीरिक विकास न हो पाना और बौनापन इसके मुख्य कारण हैं।
n इन कारणों से निपट कर बाल स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। इसके साथ ही ग्राम्य स्तरीय सेहत ढांचे को दुरुस्त किए बगैर लक्ष्य हासिल कर पाना बहुत मुश्किल है।
नियमित जांच जरूरी : शोधकर्ताओं ने बच्चों में क्रोनिक किडनी रोग से बचने के तरीके भी सुझाए हैं। इसमें नियमित जांच और मूत्र परीक्षण कराना जरूरी है। स्वस्थ और संतुलित आहार जिसमें सोडियम, फास्फोरस और पोटेशियम कम हो, किडनी के कार्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही बच्चों को फल, सब्जियां, साबुत अनाज और प्रोटीन खाने के लिए प्रोत्साहित करना और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों और स्नैक्स से बच्चों को दूर रखना जरूरी है। ऐसे भोजन जिनमें चीनी और नमक अधिक होता है, से भी परहेज जरूरी है।