उपन्यास का शीर्षक प्रथम दृष्टया पाठक को किसी नारी के व्यथित जीवन के कथानक का संकेत देता प्रतीत होता है, किंतु यह कथन छह पुत्रियों के पिता का है जो अपनी पुत्री के प्रति स्नेह व उत्तरदायित्व की अभिव्यक्ति को बल देता है।
लघु कलेवर के इस उपन्यास में नगरीय जीवन जी रहे निम्न मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार को कथानक का विषय बनाया है।कथा कुल 6 अध्यायों में विभाजित है।
लेखकीय कथन- "बुजुर्गों की पोते की चाह या यूँ मान लीजिए खुद की इच्छा के कारण छह बेटियों की जिम्मेदारी....।" से स्पष्ट होता है तथा छह पुत्रों से पल्लवित परिवार की है।
छह पुत्रियों के पिता सोमनाथ जी के जीवन के दो ध्रुवों- दांपत्य जीवन और मृत्यु के मध्य की कथा में विभिन्न सामाजिक सरोकारों का निर्वहन, पारिवारिक संस्कार ,परंपराओं में संबंधों की भीनी मधुर गंध ने कथानक को रोचक बना दिया है । यहां दर्शन का बोझ नहीं है ना पात्रों की ठूसमठाँस, ना अति कल्पना, ना दुरूह दीर्घ संवाद, ना शिल्प की जटिलताएं यहां सब कुछ इतना सहज व सामान्य है कि उपन्यास की यह विशेषता उसे असाधारणता प्रदान कर गई है।
चूँकि उपन्यास एक वृहद विधा है, इसलिए इसमें कथाकार के पास देशकाल,वातावरण ,पात्र,चरित्र चित्रण तथा अपने विचारों की अभिव्यक्ति हेतु पर्याप्त अवसर होता है; इस कृति में लेखिका ने कथा के आरंभ में प्रकृति और परिवेश का पर्याप्त चित्रण किया है किंतु आगे लेखिका का ध्यान घटनाओं की परिणिति में इतना उलझा की वातावरण निरूपण में चरित्र चित्रण का यह क्रम भंग हो जाता है। उपन्यास के आरंभ में वातावरण का सुंदर चित्रण देखिए -
"रात की चांदनी अपने चरम पर है....... चांद की शीतलता को देखकर कोई बता नहीं सकता कि सुबह सूर्य की तपिश में लोगों को कितनी गर्मी की मार सहनी पड़ी है। तारों से आसमान अटा पड़ा है। काले आंचल पर चिपकाने पर जो तारे चमकते हैं वैसा ही कुछ हाल आसमान का हो रहा है। इस शीतलता पूर्ण वातावरण में भारी ह्रदय से सोमनाथ जी अपनी पत्नी सावित्री जी के साथ छत पर चहलकदमी कर रहे हैं।"
उपन्यास में एक मुख्य कथा के साथ समानांतर कई लघु नदियों की भांति कथाएं भी चलती है जो अंत में मुख्य कथा रूपी सागर में मिलकर तिरोहित हो कथानक को पूर्णता देती है, किंतु यहां केवल एक मुख्य कथा है।
यहां एक बड़े परिवार के सुख -दुख,छाँह- तपिश ,उत्सवों की चहल-पहल ,बेटियों की रौल-चौल,रिश्तों की खटास- मिठास पाठक को जोड़े रखने में सफल रही है।
दफ्तर में कनिष्ठ लिपिक सोमनाथ को छह पुत्रियों के विवाह का उत्तरदायित्व पूर्ण करना है। विधवा हो चुकी बड़ी बेटी अनीता एक पुत्री चंचल की मां है।
सभी बेटियों को शिक्षा में रोजगार के प्रयासों को सफलता मिली है।
कथानक के माध्यम से कई सामाजिक विसंगतियों के तार्किक समाधान प्रस्तुत किए गए हैं ।स्त्री अस्तित्व बोध ,प्रेम विवाह की स्वीकृति, स्त्रियों को रोजगार अवसर, विधवा विवाह को स्वीकृति तथा सबसे छोटी पूनम द्वारा एनजीओ के माध्यम से सामाजिक सेवा का महत्व स्थापित किया गया है। मृत्यु पर केश कर्तन बेटी के पुत्र द्वारा करवाया जाना इत्यादि प्रशंसनीय है।
मां -पुत्री संवादों के माध्यम से बदलते परिदृश्य में नारी की भूमिका व दो पीढ़ियों के वैचारिक मतभेद को किस प्रकार सुखद मोड़ दिए जा सकते हैं सीख मिलती है। समाज में प्रचलित कई जुमलो के प्रति भी तर्क प्रस्तुत किए हैं जैसे- "औरत की दुश्मन औरत ही होती है।" या "आज इनकी जगह एक बेटा होता तो.... "(अध्याय 2/ 54 पृष्ठ)
यहाँ माता-पिता का वात्सल्यमयी आदर्श रूप चित्रित हुआ है....
यथार्थ इससे भिन्न होता है आज भी ।कुछ कथन देखिए सावित्री -"बच्चे भी बोझ लगने लगे मां बाप पर"( 2/54) सोमनाथ-" बेचारी नहीं है मेरी बेटियाँ। बेचारे होंगी उनके दुश्मन।" ऐसे मां-बाप सौभाग्य से मिलते हैं... सभी बेटी ऐसे आदर्श माता-पिता की चाह रखती है किंतु यथार्थ वीभत्स अधिक होता है या इसका अनुपात बहुत कम मिलता है। किंतु आधुनिक दृष्टिकोण से प्रेरित प्रसंगों ने कथानक को संजीवनी प्रदान की है।
इस उपन्यास में कोई भी घटना अपने चरम तक नहीं पहुंचती, मध्यम पड़ाव तक आते-आते घटनांत हो जाता हैं।
खंडित परिवारों के बाल मन की त्रासदी, अनीता की बेटी चंचल के माध्यम से व्यक्त हुई है । सोमनाथ व सावित्री लेखिका के जीवन में ह्रदय के अति निकट के पात्र हैं इसलिए कथानक में भी उन्हें "जी " कहकर संबोधित किया है ऐसा प्रतीत होता है।
कथा में कुछ असंगतियां पाठक को असहज कर सकती हैं जैसे- अनीता की बेटी चंचल के प्रसंग को अधूरा छोड़ देना तथा अनीता के ससुराल की कथा में सहसा दीर्घ अंतराल को समाप्त प्रायः कर देना।
आरंभ से ही सोमनाथ प्रेम विवाह के पक्ष में नहीं किंतु विधवा बेटी अनीता की विवाह के लिए सहज ही सहमत हो जाना। पात्रों का झटके से विचार परिवर्तन कर देना कथा को अविश्वसनीय बना देता है।
उपन्यास की भाषा व शैली सहज व समसामयिक है। यह कृति मध्यमवर्गीय पाठकों के साथ ही युवा मन व बुजुर्गों को भी आकर्षित करने में सक्षम है।
"मेरी दृष्टि में यह उपन्यास, जागृति स्त्री की कथा कहता प्रतीत होता है।"
शुभकामनाओं सहित .........
विधा: उपन्यास "मैं अभी जिंदा हूं"
मूल्य :190/-
संस्करण : 2020
नाम-शिखा मनमोहन शर्मा
पता- ए-10, अशोक विहार भृगु पथ, न्यू सांगानेर रोड़ मानसरोवर ,जयपुर
फोन नं.-9530005560
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