दिल्ली । बेहद गंभीर हवाओं के बीच दिल्ली सरकार बेशक लोगों से अपील कर रही है कि वह सार्वजनिक परिवहन सेवा का उपयोग करें, लेकिन सोमवार को मुसाफिरों को यह सहारा भी नसीब नहीं हुआ। डीटीसी के संविदा कर्मचारियों की हड़ताल से धुंध के बीच यात्री बसों का इंतजार करते दिखे। डीटीसी व क्लस्टर बसों के बेड़े का करीब 50 फीसदी सड़क पर न आने से यात्रियों को भारी परेशानी हुई।
मौजूदा समय में डीटीसी में 28 हजार के करीब संविदा कर्मी हैं। इसमें चालक, कंडक्टर और स्वीपर शामिल हैं। विभाग में संविदा पर कर्मियों की भर्ती बीते 20 वर्ष पहले से शुरू की गई थी। कर्मियों की मांग है कि उन्होंने अपने जीवन के कई साल डीटीसी को दिए हैं। ऐसे में उन्हें पक्की नौकरी दी जाए। और सामान काम-सामान वेतन व्यवस्था लागू की जाए। इस मांग को लेकर कर्मी बीते कई साल से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। शनिवार को सरोजनी नगर बस डिपो को महिला बस डिपो के तौर पर शुरू किया है। तत्कालीन परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने इसका उद्घाटन किया। इस दौरान दर्जनों महिला बस चालकों ने पक्की नौकरी की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसमें कई संविदा कर्मियों के यूनियन ने भी समर्थन दिया। सोमवार को राजधानी के कई बस डिपो के कर्मियों ने हड़ताल किया। इससे 50 फीसदी से कम बसें ही सड़कों पर उतर सकी।
डीटीसी ने गठित की कमेटी
दो दिन पूर्व शुरू हुए विरोध प्रदर्शन को लेकर तत्कालीन परिवहन मंत्री ने संविदा कर्मियों की मांगों पर डीटीसी को कमेटी गठित करने का कहा था। इस संबंध में सोमवार को डीटीसी की प्रबंध निदेशक की ओर से कमेटी गठित की गई है। यह कमेटी संविदा कर्मियों की मांगों पर विचार कर रिपोर्ट तैयार करेगी।
यात्री और कर्मी बोले
नांगलोई जाने के लिए बस का इंतजार करते हुए 30 मिनट से ज्यादा हो गया है। बसें नहीं आ रही हैं। जरूरी काम के लिए जाना था। ऐसे में अब ऑटो या मेट्रो का सफर करना पड़ेगा।