अंबाला। खेतों में लहलहा रही गेहूं की फसलों की कटाई का समय अब नजदीक हैं। ऐसे में बॉर्डरों पर डटे किसानों को अब वापस घरों को लौटना पड़ेगा। यह काम बारी बांध कर किया जाएगा और खास तौर से वही किसान जाएंगे, जिनके पीछे से उनकी फसलों की संभाल करने वाला कोई नहीं है।
महिला दिवस के मौके पर शुक्रवार को शंभू बॉर्डर पर बड़ी संख्या में जुटी महिलाओं ने कहा कि उनके घरों के पुरुष बीते 13 फरवरी से बॉर्डरों पर डटे हैं। अब गेहूं की फसलों की कटाई के लिए उन्हें वापस घरों को जाना पड़ेगा। हालांकि बॉर्डरों पर चल रहे किसानी आंदोलन को इससे प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा।
किसानों की गैरहाजिरी में महिलाएं बॉर्डरों पर मोर्चों को संभालेंगी। सभी महिलाओं ने एक सुर में कहा कि वह भी किसी से कम नहीं हैं। इस मौके पर महिलाओं में उत्साह देखते ही बन रहा था। पंजाब के अलग-अलग हिस्सों से महिलाएं अपने बच्चों के साथ मोर्चे पर पहुंची थीं।
उनसे जब छोटे बच्चों को बॉर्डर पर लाने का कारण पूछा गया, तो महिला रज्जो कौर ने कहा कि जब खेती नहीं रहेगी, तो फिर बच्चों का भविष्य क्या होगा। इस वजह से बच्चों में अभी से किसानों की दिक्कतों के बारे में जागरूकता होनी चाहिए ताकि वह अपने हितों की रक्षा के लिए अभी से सजग हो सकें।
बच्चों को भी पता होना चाहिए कि सरकारें किसानों के साथ क्या कर रही हैं। आज महिला दिवस पर महिलाओं ने मंच संभाला और अपने दमदार भाषणों के जरिये सरकार से किसानों की जायज मांगों को जल्द पूरा करने की अपील की।
उधर, शुक्रवार को किसानी आंदोलन 25वें दिन में प्रवेश कर गया। किसानों की तरफ से 10 मार्च के रेल रोको आंदोलन को लेकर भी तैयारियां तकरीबन पूरी कर ली गई हैं। पंजाब के सभी जिलों में रेल रोकी जाएगी और फिर रेल ट्रैक पर बैठकर किसानों की ओर से धरने-प्रदर्शन किए जाने हैं।
किसान जत्थेबंदियों की ओर से लगातार गांव-गांव जाकर लोगों से बड़ी गिनती में इस रेल रोको आंदोलन का हिस्सा बनने को प्रेरित किया जा रहा है। साथ ही बॉर्डरों पर चल रहे आंदोलन में भी भागीदारी करने की अपील की जा रही है।
किसानों का रुख साफ है कि इस आंदोलन को लोक लहर बनाकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जाए, ताकि उनकी पिछले काफी समय से लटकती आ रही मांगों को पूरा कराया जा सके।