नई दिल्ली। दिल्ली की खराब होती हवाओं के बीच बेशक पराली जलाने के मामलों पर बंदिश लगाने का शोर हर ओर है, लेकिन इस वक्त प्रदूषण में स्थानीय स्रोत ही प्रभावी हैं। बीते चार दिन में दिल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएं का हिस्सा शून्य है। विशेषज्ञों का मानना है कि तात्कालिक की जगह दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण की काट दीर्घकालिक रणनीति से मिल सकती है।
इसके लिए दिल्ली के साथ एनसीआर के शहरों की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में मजबूती लाने के साथ सड़कों से उड़ती धूल पर रोक लगानी पड़ेगी।
मानसून लौटने के क्रम में भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) ने दिल्ली के प्रदूषण के स्रोतों का पता लगाने के लिए एक मॉडल तैयार किया है। इसमें दिल्ली में धूल के महीन कणों पीएम2.5 के अलग-अलग स्रोत की पहचान की गई है। वहीं, पराली के धुएं का भी आकलन किया गया है। साथ में दिल्ली- एनसीआर के शहरों के प्रदूषण के असर को भी मापा गया है। इसके अलावा देश के दूसरे हिस्सों से आने वाले प्रदूषण को भी जगह दी गई है। इसका मकसद सरकारी एजेसियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में मददगार बनना है।
आंकड़े बताते हैं कि 25-28 सितंबर के बीच दिल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएं का हिस्सा शून्य है। इसमें दिल्ली के स्थानीय प्रदूषण के साथ गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर और एनसीआर के शहर के प्रदूषण अहम रहे हैं। वहीं, एनसीआर से बाहर के प्रदूषक भी शामिल हैं। स्थानीय प्रदूषकों में वाहनों से निकलने वाला धुंआ सबसे ज्यादा है। जबकि हवाओं के रुख में हो रहे बदलाव के बावजूद एनसीआर के शहरों में गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर के सबसे ज्यादा प्रदूषक दिल्ली पहुंच रहे हैं।
सफर के संस्थापक और एनआईएएस बंगलुरू के विजिटिंग प्राफेसर गुफरान बेग बताते हैं कि जटिल होने के बावजूद यह मॉडल प्रदूषण के स्रोतों पर रोशनी डाल रहा है। इससे साफ है कि पराली का धुंआ अभी दिल्ली नहीं पहुंचा है। बावजूद इसके प्रदूषण स्तर बढ़ रहा है। इससे स्पष्ट है कि सरकारों को दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण का खत्म करने के लिए दीर्घकालिक रणनीति पर काम करना पड़ेगा। इसमें पहला जोर सार्वजनिक परिहवन व्यवस्था की मजबूती हो सकता है।
आईआईटीएम के डिसिजन सपोर्ट सिस्टम में भले ही अभी सुधार की जरूरत है, लेकिन इससे मिलने वाले आंकडे बेहद अहम हैं। दिल्ली में स्थानीय स्तर पर सबसे ज्यादा प्रदूषण वाहनों से हो रहा है। इस दिशा में सरकारी एजेसियों को कारगर कदम उठाने की जरूरत है। खासतौर से इसलिए भी कि त्योहारी सीजन में सड़कों पर वाहन बढ़ेंगे। साथ में जाम की समस्या भी आम रहेगी। वहीं, एनसीआर शहरों को भी अलर्ट मोड पर जाना पड़ेगा।
-विवेक चट्टोपाध्याय, प्रोग्राम डायरेक्टर, क्लीन एयर एंड सस्टनेबल एनर्जी, सीएसई
दिल्ली की हवा न हो खराब, पंजाब हरियाणा में उड़न दस्ते तैनात
पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम को लेकर निगरानी तेज करने के लिए सीपीसीबी के उड़न दस्ते एक अक्तूबर से 20 नवंबर तक हॉट स्पॉट जिलों में तैनाती की है। जहां पराली जलाने की घटनाएं अधिक होती हैं। वहीं, राज्य सरकार द्वारा नियुक्त जिलास्तर पर संबंधित अधिकारियों व नोडल अधिकारियों के साथ फ्लाइंग स्कॉवड मिलकर समन्वय करेंगे। इसमें पंजाब के 16 जिले और हरियाणा के 10 जिले में स्कॉवड तैनात किए गए हैं।
पंजाब में अमृतसर, बरनाला, बठिंडा, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, मानसा, मोगा, मुक्तसर, पटियाला, संगरूर और तरनतारन जिले शामिल हैं। वहीं, हरियाणा में अंबाला, फतेहाबाद, हिसार, जींद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, सिरसा, सोनीपत और यमुनानगर हैं। इस दौरान फ्लाइंग स्कॉवड संबंधित अधिकारियों के साथ समन्वय में जमीनी स्तर की स्थिति का आकलन करेंगे।
साथ ही, पराली जलाने की आगे की घटनाओं को रोकने के लिए उठाए गए कदमों सहित दैनिक आधार पर कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) और सीपीसीबी को रिपोर्ट करेंगे। इसके अलावा सीएक्यूएम जल्द ही मोहाली व चंडीगढ़ में एक धान की पराली प्रबंधन सेल स्थापित करेगा।
दिल्ली की हवा खराब श्रेणी की ओर बढ़ रही
राजधानी दिल्ली में आबोहवा धीरे-धीरे खराब श्रेणी की ओर बढ़ रही है। मंगलवार को हवा पश्चिम से उत्तर-पश्चिम दिशा से आठ से 12 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से चली। ऐसे में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 151 यानी मध्यम श्रेणी में दर्ज किया गया। उत्तर भारत में मंगलवार को कुल पराली जलाने के 207 मामले दर्ज किए गए। इसमें पंजाब में कुल 26 घटनाएं घटीं। इस सीजन में पंजाब में अब तक 151 पराली जलाने की घटनाएं हुईं है। साथ ही, दिल्ली में अधिकतर इलाकों में वायु सूचकांक मध्यम श्रेणी में रहा। वहीं, गाजियाबाद में एक्यूआई 170, नोएडा में 141, ग्रेटर नोएडा में 148, गुरुग्राम में 106 और फरीदाबाद में एक्यूआई 88 रिकॉर्ड किया।
तीन दिन के पूर्वानुमान के आधार पर लागू होगा ग्रेप
ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रेप) अब तक पूर्वानुमान के आधार पर लागू किया जाता था। एक भी पूर्वानुमान में खराब, बेहद खराब या गंभीर स्थिति दिखने पर ग्रेप के विभिन्न चरणों को लागू कर दिया जाता था। अब तीन दिन तक पूर्वानुमान के एक स्थिति में रहने पर ही ग्रेप-2, 3 और 4 लागू होंगे।