नई देश। शोध में छह राज्यों और नौ जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया गया। अध्ययन से पता चला कि इन इलाकों में भोजन में मुख्य रूप से चावल और गेहूं जैसे अनाज का उपयोग अधिक किया जाता है,
जो दैनिक प्रोटीन सेवन का 60 से 75 फीसदी हिस्सा उपलब्ध कराते हैं। इन अनाजों में आवश्यक अमीनो एसिड की कमी होती है, जिससे संतुलित पोषण प्राप्त नहीं हो पाता।
भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में लोग प्रोटीन की कमी से जूझ रहे हैं, जबकि वे प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर सकते हैं या खरीद सकते हैं। जागरूकता की कमी की वजह से ऐसा हो रहा है। यह जानकारी इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स, इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट और सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड सोशल स्टडीज के वैज्ञानिकों के संयुक्त अध्ययन में सामने आई है।
शोध में छह राज्यों और नौ जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया गया। अध्ययन से पता चला कि इन इलाकों में भोजन में मुख्य रूप से चावल और गेहूं जैसे अनाज का उपयोग अधिक किया जाता है, जो दैनिक प्रोटीन सेवन का 60 से 75 फीसदी हिस्सा उपलब्ध कराते हैं। इन अनाजों में आवश्यक अमीनो एसिड की कमी होती है, जिससे संतुलित पोषण प्राप्त नहीं हो पाता।
प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों को महत्व से अनजान हैं लोग
ऐसा नहीं है कि ग्रामीण भारतीय दालें, डेयरी, अंडे और मांस जैसे पर्याप्त प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ नहीं खरीद सकते या उनका उत्पादन नहीं कर सकते। अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे दालें, डेयरी उत्पाद, अंडे और मांस का सेवन इसलिए नहीं हो रहा क्योंकि लोग इनके महत्व से अनजान हैं। इस शोध ने इस धारणा को चुनौती दी है कि कुपोषण केवल आर्थिक असमर्थता का परिणाम है। इसके बजाय, यह खान-पान की पारंपरिक आदतों और पोषण संबंधी जानकारी के अभाव के कारण होता है।
अध्ययन का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि जिन परिवारों में महिलाएं शिक्षित थीं, वहां संतुलित आहार अपनाने की संभावना अधिक थी। महिला शिक्षा और सशक्तिकरण में निवेश करने से ग्रामीण भारत में पोषण में सुधार किया जा सकता है।