हल्द्वानी। यह आंखोंदेखी है। अतिक्रमण हटाने के लिए टीम के पहुंचते ही माहौल में तनाव बढ़ने लगा था। हर तरफ से लोग जुटने लगे। पुलिस ने बैरिकेडिंग वाली जगह से लोगों को हटने को कहा तो तकरार हो गई। पुलिस ने धकेलने की कोशिश की तो दूसरी ओर से भी जोर आजमाइश और नारेबाजी होने लगी।
तनाव के बीच पहुंची जेसीबी ने अवैध निर्माण ध्वस्त करना शुरू किया तो पथराव शुरू हो गया। एक पत्थर मेरे चेहरे पर पड़ने वाला था, जिसे हाथ से रोका तो अंगुली सूज गई। बगल में खड़े प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि ...आप देख रहे हैं यह ठीक नहीं हो रहा है। लोग कानून हाथ में ले रहे हैं।
अभी यह बात पूरी होती कि एक पत्थर फिर आ गिरा। इसके बाद उपद्रवियों ने हमला तेज कर दिया। जिस मुख्य रास्ते से आए थे, वहां पर खड़े वाहनों को आग लगा दी। जहां खड़े थे, वहां 112 पुलिस की जीप में आग लगा दी गई। इसके बाद तीन तरफ से पथराव होने लगा। बचने की कोई गुंजाइश नहीं थी। मेरे सामने कई पुलिसकर्मी घायल हो रहे थे, पुलिस की बचाव और जवाब देने की कोशिश नाकाफी साबित हो रही थी। ऐसे में विकल्प था कि जान बचाने के लिए मौके से हटें।
आगे बढ़े तो फिर अराजक तत्वों ने घेरकर पथराव कर दिया। इसमें कई पत्थर पीठ और पैरे में लगे। लड़खड़ाते हुए आगे बढ़े और टेंपो में छिप गए, फिर एक भवन में आसरा लिया। हर तरफ अपशब्दों और मारों की आवाज गूंज रही थी। एक बार लगा कि शायद...यहां से कभी निकल नहीं सकेंगे। पुलिसकर्मी भी हताश होने लगे थे।
हर तरफ बदहवासी और चिंता थी...बीते वर्षों में कई बार मौका आया कि जब तनाव बढ़ा, पर ऐसा नहीं हुआ कि हालात बेकाबू हो जाएं। पर इस घटना ने शहर को एक ऐसा जख्म और दाग दे दिया, जो आने वाले सालों में शायद ही भर सकें।