नई दिल्ली। पीठ ने कहा, स्वेच्छा से गरीब वादियों का प्रतिनिधित्व करके वकील समाज को सामूहिक रूप से बड़े पैमाने पर यह संदेश दे सकते हैं कि कानूनी पेशा न केवल सिद्धांत में, बल्कि व्यवहार में भी न्याय तक पहुंच और कानून के समक्ष समानता के अधिकार के लिए खड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि युवा वकीलों को मौका मिलने पर ऐसे वादकारों की मदद के लिए स्वेच्छा से सामने आना चाहिए जो पैसे या अन्य संसाधनों की कमी के कारण वकील की सेवाएं ले पाने में असमर्थ हैं।
एक युवा वकील की ओर से एक पक्षकार को कानूनी मदद उपलब्ध कराने की सराहना करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, युवा वकीलों को गरीब वादकारों से बिना किसी आर्थिक अपेक्षा के अपनी बेहतरीन पेशेवर कानूनी सहायता उपलब्ध करानी चाहिए। पीठ ने कहा, स्वेच्छा से गरीब वादियों का प्रतिनिधित्व करके वकील समाज को सामूहिक रूप से बड़े पैमाने पर यह संदेश दे सकते हैं कि कानूनी पेशा न केवल सिद्धांत में, बल्कि व्यवहार में भी न्याय तक पहुंच और कानून के समक्ष समानता के अधिकार के लिए खड़ा है। शीर्ष अदालत ने कहा, अधिवक्ताओं के ऐसे प्रयास, भले ही व्यक्तिगत क्षमता में हों, लेकिन मुकदमेबाजी में सौहार्दपूर्ण शांति लाने के एक सामान्य उद्देश्य की दिशा में काम कर रहे हों। इससे यह संदेश जाएगा कि वकील पक्षों के पारस्परिक रूप से सहमत समाधान तक पहुंचने की प्रक्रिया में बाधा नहीं हैं।
पीठ ने कहा, वे पार्टियों को उनके विवादों को समाप्त करने में मदद करने में भी प्रभावी ढंग से अपनी भूमिका निभा सकते हैं, और मध्यस्थता और सुलह जैसे वैकल्पिक विवाद तंत्र में सकारात्मक रूप से जोड़ सकते हैं। पीठ ने कहा, ये समाज में सार्थक योगदान देने के अवसर हैं और इसके परिणामस्वरूप कानूनी पेशे को सामान्य रूप से समाज और विशेष रूप से गरीब वादियों की सद्भावना हासिल होगी।