नई दिल्ली। एमसीडी का खजाना खाली है। इस वजह से दिल्ली के नए मेयर को कुर्सी पर बैठते ही बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि निगम अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन तक नहीं दे पा रहा है। कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा है।
एमसीडी के अधिकारियों को इसके लिए कोर्ट ने फटकार लगाई है। इस समय निगम का सारा फोकस अपने कर्मचारियों को वेतन और रिटायर कर्मियों को पेंशन देने पर है। ऐसे में विकास कार्य रोक दिए हैं। इधर, साल भर से ज्यादा समय बीत गया है, जब स्टैंडिंग कमेटी नहीं होने के कारण एमसीडी के आर्थिक और नीतिगत कामकाज ठप है। इन संकटों से निगम को उबारने के लिए मेयर को कमर कसनी पड़ेगी।
दिल्ली सरकार से लेना होगा हक का पैसा
निगम ने हाल ही में कोर्ट को बताया है कि दिल्ली सरकार पर निगम का 738 करोड़ रुपया बकाया है। दिल्ली सरकार ने 25 अप्रैल तक पैसे देने के लिए कहा है। इस साल निगम बजट में आप शासित एमसीडी ने कहा था कि कूड़े के पहाड़ों पर वह करीब 4500 करोड़ रुपये खर्च करेगी। अस्पतालों पर 1745.19 करोड़ रुपये लगाएगी। दिल्ली सरकार से निगम विद्यालयों के लिए 1885 करोड़ और 1500 करोड़ शिक्षकों के वेतन के लिए अलग मिलेंगे। मेयर को ये सारा पैसा दिल्ली सरकार से जल्द लेने की कोशिश करनी होगी।
मजबूत कार्य योजना से बढ़ाना होगा संपत्ति कर
निगम ने इस साल करीब 4300 करोड़ रुपये संपत्ति कर जुटाने का लक्ष्य रखा है। ये पिछले साल की तुलना में करीब दो हजार करोड़ ज्यादा है। इधर संपत्तियों की जियो टैगिंग का काम बेहद धीमा है। इस साल पार्किंग से करीब 200 करोड़ इकट्ठा करने का लक्ष्य है। विज्ञापन से 300 करोड़ और ट्रेड लाइसेंस से 152.50 करोड़ रुपये इकट्ठा करना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए निगम के पास अभी तक कोई मजबूत कार्य योजना नहीं है।
विपक्ष के साथ बढ़ाना होगा तालमेल
निगम के वरिष्ठ अधिकारी इस बात को मानते हैं कि विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष तालमेल बनाए बिना विकास के कार्य नहीं कर सकता। पिछले एक साल से सत्ता पक्ष और विपक्ष की तकरार के कारण निगम से जुड़े आर्थिक और नीतिगत कामकाज नहीं हो पाए। सदन की एक भी बैठक शांतिपूर्ण नहीं चली। निगम के किसी काम पर चर्चा नहीं हुई, जिसका नुकसान दिल्ली की जनता भुगत रही है।