नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एकपक्षीय सुनवाई कर करोड़ों रुपये के जुर्माने लगाने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को नसीहत देते हुए इस चलन को अफसोसनाक बताया है। सुनवाई के तरीके को लेकर भी शीर्ष कोर्ट ने खिंचाई की।
दो अपीलों पर सुनवाई के दौरान जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा, एनजीटी को न्याय की अपनी यात्रा में सावधानी से कदम बढ़ाना चाहिए। पीठ ने 2021 के दो आदेश रद्द कर मामले पर पुनर्विचार का आदेश दिया।
शीर्ष कोर्ट ने कहा, एनजीटी को न्याय देनेे और तय प्रक्रिया के पालन में लयबद्ध संतुलन रखना चाहिए। उसके लिए जरूरी है कि वह प्रक्रियागत सत्यनिष्ठा की भावना कायम करे। तभी एनजीटी कह सकता है कि वह पर्यावरण संरक्षण की मशाल थामे हुए है। इससे अच्छे इरादे से किए प्रयास भी बेकार नहीं जाएंगे। पीठ 31 अगस्त, 2021 के एनजीटी के एकपक्षीय निर्णय व जुर्माने और 26 नवंबर, 2021 के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका खारिज करने के आदेश के खिलाफ अपीलों की सुनवाई कर रही थी।
सीख : न नोटिस भेजा, न तथ्य जांचना जरूरी समझा
एनजीटी ने स्वत:संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई की थी। आदेश में उसने खुद ही माना कि नोटिस तक जारी नहीं हुए हैं। न ही एनजीटी ने पेश किए तथ्यों की जांच के लिए प्रतिवादी को सुनना जरूरी समझा। प्रतिवादी ने मुख्य आदेश के खिलाफ अपील की, तो उसे भी खारिज कर दिया।
खेदजनक...एकतरफा फैसले, पुनर्विचार नहीं
एनजीटी लगातार एकपक्षीय निर्णय ले रहा है। पुनर्विचार की अपील भी सुनवाई के बाद नियमित तौर पर खारिज कर रहा है। अफसोसनाक है कि यह चलन में आ चुका है।
पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य को भी नुकसान
अधिकरण को न्याय की अपनी ऊर्जा भरी यात्रा के दौरान सावधानी से कदम बढ़ाने चाहिए, ताकि वह सुचरित्रता की जांच से बच सके। एकपक्षीय सुनवाई व करोड़ों के जुर्माने के आदेश की प्रथा से पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्य को नुकसान हो रहा है।
पुराने आदेश रद्द करने के सिवा विकल्प नहीं
शीर्ष कोर्ट ने कहा, इन आदेशों पर 4 मार्च, 2022 को ही रोक लगा दी थी, जो होना ही था। इस बात को भी अब दो साल बीत चुके हैं। हमारे पास अब कोई विकल्प नहीं है, एनजीटी के दोनों आदेश निरस्त किए जाते हैं। संबंधित पक्षों को नोटिस भेजकर मामला फिर से सुनने और उचित निर्णय लेने के आदेश दिए जाते हैं। यह भी साफ किया कि मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट कोई राय प्रकट नहीं कर रहा है, अगर किसी ने पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन किया है, तो उसे कानून के तहत परिणाम भुगतने ही होंगे।