नई दिल्ली। माइक्रोप्लास्टिक के चलते मस्तिष्क की मूल संरचना में बदलाव हो रहा है तो दिल का दौरा पड़ने, स्ट्रोक होने मौत का जोखिम 4.5 गुना तक बढ़ जाता है। अध्ययन के अनुसार 1997 से 2024 के बीच किए गए कई पोस्टमॉर्टम के दौरान मस्तिष्क के ऊतकों में माइक्रो और नैनो प्लास्टिक की मात्रा बढ़ने का पता चला है।
इन्सानी शरीर खास तौर से दिमाग में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। यह बढ़ोतरी एक गंभीर स्वास्थ्य खतरे की ओर इशारा करती है। लीवर और किडनी की तुलना में मस्तिष्क में कहीं अधिक मात्रा में प्लास्टिक के अति सूक्ष्म कण जमा हो रहे हैं। यह जानकारी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आई है।
माइक्रोप्लास्टिक के चलते मस्तिष्क की मूल संरचना में बदलाव हो रहा है तो दिल का दौरा पड़ने, स्ट्रोक होने मौत का जोखिम 4.5 गुना तक बढ़ जाता है। अध्ययन के अनुसार 1997 से 2024 के बीच किए गए कई पोस्टमॉर्टम के दौरान मस्तिष्क के ऊतकों में माइक्रो और नैनो प्लास्टिक की मात्रा बढ़ने का पता चला है। इसी प्रकार लीवर और किडनी के ऊतकों में भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए गए। लीवर, किडनी और मस्तिष्क के नमूनों का विश्लेषण करने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया है। कुल 52 मस्तिष्क के नमूनों की जांच की गई जिसमें 2016 के 28 नमूने और 2024 के 24 नमूने शामिल थे। सभी नमूनों में प्लास्टिक की मौजूदगी के प्रमाण मिले।
इंसानी रक्त और मां के दूध में भी माइक्रोप्लास्टिक
शोध में इंसानी रक्त, मां के दूध, प्लेसेंटा व शरीर के अन्य अंगों में भी माइक्रोप्लास्टिक के प्रमाण मिलेे हैं। हालांकि ये सूक्ष्म कण स्वास्थ्य को किस हद तक प्रभावित कर सकते हैं, इस पर अभी और शोध की जरूरत है। फिर भी विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों में यह चेतावनी दी गई है कि माइक्रोप्लास्टिक्स इंसानी स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। इस नवीनतम अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि प्लास्टिक प्रदूषण का असर लगातार गहराता जा रहा है। पिछले पांच दशकों में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। ऊंचे पहाड़ों से लेकर समुद्र की गहराइयों तक, पृथ्वी का शायद ही कोई ऐसा कोना बचा हो जहां प्लास्टिक न पहुंचा हो।
डिमेंशियाग्रस्त लोगों के मस्तिष्क में छह गुना ज्यादा
स्वस्थ लोगों की तुलना में डिमेंशिया पीड़ितों के मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी बहुत ज्यादा पाई गई। यह सामान्य लोगों की तुलना में छह गुना अधिक था। वैज्ञानिकों का मानना है कि डिमेंशिया से होने वाले तंत्रिका क्षरण से माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा बढ़ सकती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि माइक्रोप्लास्टिक डिमेंशिया का कारण बनता है या नहीं।
2016 में जमा लीवर व किडनी के नमूनों में प्लास्टिक की मात्रा लगभग समान थी, पर मस्तिष्क में यह काफी अधिक था। 2024 के लीवर व मस्तिष्क के नमूनों में प्लास्टिक के महीन कण 2016 की तुलना में ज्यादा मिले। वैज्ञानिकों ने 1997 से 2013 के बीच लिए गए मस्तिष्क के ऊतकों से इन निष्कर्षों की तुलना में पाया कि हाल के वर्षों में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर तेजी से बढ़ा है।