नई दिल्ली । देश में अंग्रेजों के जमाने के आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले तीन संशोधन विधेयकों को सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी। इन कानूनों की जगह नए कानून के लिए संसद ने पिछले सप्ताह ही तीनों विधेयकों को पारित किया था।
तीनों नए कानून अब भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता व भारतीय साक्ष्य अधिनियम कहे जाएंगे, जो क्रमश: भारतीय दंड संहिता (1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1898) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) की जगह लेंगे। संसद में तीनों विधेयकों पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इनमें सजा देने के बजाय न्याय देने पर फोकस किया गया है।
ये कानून केंद्र की तरफ से आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित किए जाने की तिथि से लागू हो जाएंगे। इन कानूनों का मकसद अपराधों व उनकी सजाओं को परिभाषित कर आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलना है। अब भारत में लागू किसी भी कानून के तहत उत्तरदायी किसी भी व्यक्ति पर भारत से बाहर किए गए किसी भी अपराध के लिए इस कानून के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया जा सकेगा। पहली बार कानून में आतंकवाद को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। राजद्रोह को अपराध के रूप में खत्म कर दिया गया है। इसके स्थान पर देश के खिलाफ अपराध नामक एक नया खंड जोड़ा गया है।
दूरसंचार बिल को भी राष्ट्रपति की मंजूरी
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में संसद के दोनों सदनों से पारित दूरसंचार बिल को भी मंजूरी दे दी है। नए कानून से इस क्षेत्र को निवेशक हितैषी बनाने में मदद मिलेगी। नए कानून से न केवल उपयोगकर्ताकों संरक्षण में प्राथमिकता मिलेगी, बल्कि सरकार को यह बातचीत को टैप करने की अधिक शक्तियां भी मिलेगी। इसके अलावा प्रसारण, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसी शीर्ष सेवा इसके दायरे में शामिल नहीं होगी, इससे स्पेक्ट्रम आवंटन के नियमों को भी मजबूती मिलेगी। इससे उपग्रह-आधारित संचार सेवाओं के लिए एयरवेव आवंटित करने के लिए एक गैर-नीलामी मार्ग प्रसस्त करेगा। लोकसभा ने 20 दिसंबर को और राज्यसभा ने 21 दिसंबर को मंजूरी दे दी थी।
पिछले हफ्ते नए सिरे से पेश किए गए थे विधेयक
इन तीनों कानूनों का उद्देश्य विभिन्न अपराधों और उनकी सजा की परिभाषा देकर देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलना है। इनमें आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा दी गई है, राजद्रोह को अपराध के रूप में समाप्त किया गया है और 'राज्य के खिलाफ अपराध' नामक एक नई धारा पेश की गई है। इन विधेयकों को पहली बार अगस्त में संसद के मानसून सत्र के दौरान पेश किया गया था। गृह मामलों की स्थायी समिति द्वारा कई सिफारिशें किए जाने के बाद सरकार ने विधेयकों को वापस लेने का फैसला किया और पिछले हफ्ते उनके फिर से तैयार किए गए संस्करण पेश किए।
ठगों को 420 नहीं, 316 कहिए
भारतीय न्याय संहिता में धोखाधड़ी या ठगी का अपराध 420 में नहीं, अब धारा 316 के तहत आएगा। इसी तरह किसी की हत्या करने वाला धारा 302 नहीं, धारा 101 का अपराधी बनेगा। अब अशांति या बवाल को रोकने के लिए धारा 144 नहीं, धारा 187 लगाई जाएगी।
महिलाओं व बच्चों के खिलाफ अपराध पर नया अध्याय
न्याय संहिता में महिलाओं और 18 साल से कम उम्र की बच्चियों के खिलाफ दुष्कर्म और अपराधों से निपटने के लिए नया अध्याय जोड़ा गया है। नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के अपराध पर उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है।
भारतीय दंड संहिता में 511 धाराएं थीं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में धाराएं 358 रह गई हैं। बीस नए अपराध शामिल किए हैं, 33 अपराधों में सजा अवधि बढ़ाई है। 83 अपराधों में जुर्माने की रकम भी बढ़ाई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है। छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान है।
दंड प्रक्रिया संहिता की 484 धाराओं के बदले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। 177 प्रावधान बदले हैं, नौ नई धाराएं और 39 उपधाराएं जोड़ी हैं। 35 में समय सीमा तय की है।
नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 प्रावधान हैं। इससे पहले वाले कानून में 167 प्रावधान थे। नए कानून में 24 प्रावधान बदले हैं।
राजद्रोह के नए अवतार में क्या है
कानून के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति जानबूझकर मौखिक या लिखित या संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व या इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का इस्तेमाल करके अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करता है या उत्तेजित करने का प्रयास करता है, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है या इस तरह के किसी भी कार्य में शामिल होता है या करता है या ऐसा कोई कार्य करता है या करती है, तो उसे आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी। कारावास सात साल तक बढ़ाया जा सकता है। व्यक्ति जुर्माना के लिए भी उत्तरदायी होगा।
पहले राजद्रोह से जुड़ी धारा 124 में क्या था
राजद्रोह से जुड़ी आईपीसी की धारा 124 के मुताबिक, अपराध में शामिल किसी भी व्यक्ति को आजीवन कारावास या तीन साल की जेल की सजा हो सकती है।
राजद्रोह शब्द की जगह मिला नया शब्द 'देशद्रोह'
नए कानूनों के तहत 'राजद्रोह' को एक नया शब्द 'देशद्रोह' मिला है। इस प्रकार ब्रिटिश काल के शब्द को हटा दिया गया है। साथ ही पहली बार भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद शब्द को परिभाषित किया गया है। यह आईपीसी में नहीं था। नए कानूनों के तहत मजिस्ट्रेट के जुर्माना लगाने के अधिकार को बढ़ाने के साथ ही अपराधी घोषित करने का दायरा बढ़ा दिया गया है। साथ ही पहली बार भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद शब्द को परिभाषित किया गया है। यह आईपीसी में अनुपस्थित था। नए कानूनों के तहत मजिस्ट्रेट के जुर्माना लगाने के अधिकार को बढ़ाने के साथ ही अपराधी घोषित करने का दायरा बढ़ा दिया गया है।