सुप्रीम। कोर्ट की पूरी टिप्पणी क्या थी? अदालत ने किस मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की? सुप्रीम कोर्ट ने किन राज्यों की योजनाओं को लेकर मुफ्त एलानों पर निशाना साधा? इसके अलावा यह जानना भी अहम है कि किन राज्यों में वैसी ही योजनाएं लागू की गई हैं?
आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को शहरी बेघरों के लिए आश्रय की मांग वाली जनहित याचिका को लेकर सुनवाई की। इस मामले में सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के जज जस्टिस बीआर गवई ने इशारों-इशारों में राजनीतिक दलों की रेवड़ी योजनाओं पर निशाना साधा। जस्टिस गवई ने कहा कि बेहतर होगा कि लोगों को परजीवी (दूसरों पर निर्भर रहने वाला) बनाने के बजाय समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए ताकि वे भी देशहित में अपना योगदान दे सकें।
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद देशभर में रेवड़ी संस्कृति और मुफ्त की योजनाओं को लेकर चर्चा जारी है। हालांकि, यह जानना अहम है कि सुप्रीम कोर्ट की पूरी टिप्पणी क्या थी? अदालत ने किस मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की? सुप्रीम कोर्ट ने किन राज्यों की योजनाओं को लेकर मुफ्त एलानों पर निशाना साधा? इसके अलावा यह जानना भी अहम है कि किन राज्यों में वैसी ही योजनाएं लागू की गई हैं? आइये जानते हैं...
पहले जानें- अदालत ने किस मामले की सुनवाई के दौरान की यह टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट में ईआर कुमार बनाम केंद्र सरकार, 2003 के मामले पर सुनवाई हो रही है। अगर संक्षेप में समझा जाए तो यह मामला शहरों में बिना घरों के रह रहे लोगों के लिए आश्रय सुनिश्चित करने से जुड़ा है।
अक्तूबर 2022 में इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों को शहरी बेघरों के लिए आश्रयों से जुड़ी एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।
पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और बिहार से सर्दियों के दौरान शहरी बेघरों के लिए किए जाने वाले अस्थायी इंतजामों की जानकारी मांगी थी।
3 दिसंबर को प्रशांत भूषण ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि दिल्ली में शेल्टर होम्स में सिर्फ 17 हजार लोगों को रखने की जगह है, जबकि यह क्षमता 2 लाख से ज्यादा होनी चाहिए।
12 फरवरी को वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले में दो समस्याएं आगे रखी थीं- (i) आश्रयों की कमी से जुड़ी परेशानी और (ii) आश्रयों की स्थिति से जुड़ी समस्या।
अब जानें- सुप्रीम कोर्ट ने मामले में क्या कहा?
शहरी बेघरों को आश्रय मुहैया कराने से जुड़े इसी मामले में कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई की। इसमें सरकार की तरफ से एक एफिडेविट दाखिल कर बताया गया था कि शेल्टर होम्स में बेघरों को क्या-क्या सुविधा दी जाएंगी। इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीआर गवई भड़क गए। उन्होंने इस मुद्दे को सरकार की मुफ्त योजनाएं मुहैया कराने की नीति से जोड़ते हुए एक के बाद एक कई टिप्पणियां कीं।
इस मामले में ही जब याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इस देश में कोई ऐसा नहीं है, जो काम नहीं करना चाहता, 'अगर' काम मौजूद हो तो। इस पर जस्टिस गवई ने जवाब देते हुए कहा- 'आपके पास एकतरफा जानकारी ही होगी।' जज ने अपना निजी अनुभव बताते हुए कहा, "मैं एक कृषि परिवार से आता हूं। महाराष्ट्र में मुफ्त की योजनाएं, जिनका एलान चुनाव से ठीक पहले किया गया था, उसके चलते अब कृषकों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं। हर किसी को घर बैठे मुफ्त चीजें मिल रही हैं।"
मध्य प्रदेश की योजना पर सुप्रीम कोर्ट का निशाना
जस्टिस गवई ने जिस लाड़ली बहन योजना का नाम लिया, वह मध्य प्रदेश में लागू है। इस योजना के तहत विवाहित, विधवा, तलाकशुदा, अन्य महिलाओं को 1250 रुपये प्रतिमाह की आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाती है। हालांकि, यह इन योजनाओं के लाभ के लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं, जिन्हें पूरा करना जरूरी है।
महाराष्ट्र का नाम लेकर मुफ्त की योजनाओं पर घेरा
दूसरी तरफ महाराष्ट्र में भी गरीब परिवारों की सहायता के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। इनमें महिलाओं से जुड़ी एक योजना लाड़की बहिन योजना है, जिसके तहत 21 से 65 वर्ष के आयु वर्ग की उन महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह मदद मिलती है, जिनके परिवार की सालाना आय ढाई लाख रुपये से कम है। चुनाव प्रचार के दौरान महायुति के नेताओं ने इस योजना के तहत दी जाने वाली मदद को 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये करने का वादा किया था।
मुफ्त राशन योजना का भी जिक्र
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट की तरफ से मुफ्त राशन योजना का भी जिक्र किया गया। गौरतलब है कि केंद्र सरकार देशभर में कोरोनावायरस महामारी के समय से ही जरूरतमंद और गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न मुहैया करा रही है। इस योजना को पहले कोरोनाकाल में कम से कम तीन बार बढ़ाया गया और आखिरकार दिसंबर 2023 तक जारी रखने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि, बाद में 1 जनवरी 2024 से इसे पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। इस योजना के तहत लोगों को निशुल्क अनाज उपलब्ध कराया जाता है।
क्या ऐसी नकद हस्तांतरण योजनाएं प्रभावी हैं?
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के एक अध्ययन के अनुसार, डीबीटी सुविधा, जिसे पहली बार 2013 में महिला बैंक खाताधारकों के लिए लॉन्च किया गया था, के जरिए शुरुआत से लेकर 2022 तक ₹16.8 लाख करोड़ ट्रांसफर किए गए हैं। इस राशि का 33% हिस्सा 2020-21 के दौरान यानी कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान ट्रांसफर किया गया। 316 सरकारी योजनाओं में इस्तेमाल किए जाने वाले डीबीटी ने घरों में महिलाओं के निर्णय लेने में मदद की है और उनकी शिक्षा और नौकरी के अवसरों को बढ़ाने में मदद की है।
प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई), जो कि बुनियादी बचत बैंक खाता खोलने के लिए केंद्र की प्रमुख वित्तीय समावेशन योजना है, ने केंद्र को डीबीटी के लिए महिला लाभार्थियों की आसानी से पहचान करने की सुविधा दी है। इससे केंद्र को कोविड-19 महामारी के समय लगे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान अपने घरों का खर्च चलाने वाली महिलाओं को तीन महीने के लिए 500 रुपये हस्तांतरित करने में मदद मिली।