लखनऊ । पश्चिमी उप्र में आहिस्ता आहिस्ता सुलग रही मुद्दों की चिंगारी ने ऐसा असर दिखाया कि प्रदेश भर का परिदृश्य ही बदल गया। किसानों और युवाओं के मुद्दे, रोजगार पर नाराजगी के साथ जातिगत लामबंदी और भाजपाई उम्मीदवारों के विरोध ने ऐसा गणित रचा कि प्रदेश भर में भाजपा बैकफुट पर आ गई।
पिछले चुनाव में पश्चिमी उप्र की 27 सीटों में से भाजपा ने जहां 19 सीटें जीत ली थीं तो इस बार वह सिमटकर 12 सीटों पर आ गई। हालांकि उसके सहयोगी रालोद को भी दो सीट मिल गईं। उधर सपा कांग्रेस ने मिलकर 12 सीटों पर जीत अपनी जीत का परचम फहरा दिया। आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद ने भी चुनावी मैदान जीतकर नगीना में नया इतिहास लिख दिया।
वर्ष 2014 के चुनाव से शुरुआत करते हैं। इस चुनाव में पश्चिमी उप्र में मोदी मैजिक चला और यहां की 27 सीटों में से 24 सीटें भाजपा की झोली में आ गिरीं। वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने केंद्र सरकार बनाई लेकिन पश्चिमी उप्र में उसकी सीटें कम हो गईं। 27 में से आठ सीटें भाजपा के हाथ से निकल गईं। सपा और बसपा ने चार- चार सीटें बांट ली। 19 पर भाजपा जीती। भाजपा थिंक टैंक ने इस चुनाव में इस स्थिति को भांपते हुए कोशिश तो खूब की पर सारा प्रयास बेकार ही गया। पश्चिम में मुद्दे कुछ अलग ही थे और वह भी मुखर रूप में। इस बार पश्चिम उप्र में किसानों ने वोटों के जरिए अपनी नाराजगी दिखाई। फौज में भर्ती होने के लिए सबसे ज्यादा पसीना बहाने वाले पश्चिम उप्र के युवाओं में अग्निवीर योजना को लेकर खूब गुस्सा था। रोजगार की चाह थी। यह नाराजगी वोट के रूप में बाहर आई। इसके अलावा विभिन्न सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों के प्रति लोगों की नाराजगी ने पूरी कहानी बदल दी।
मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान का विरोध जग जाहिर था। बावजूद इसके भाजपा थिंक टैंक चूक कर गया और इसे भांप ही नहीं पाया। यहां जगह जगह हुई पंचायतों ने वह काम किया जिसके लिए विपक्ष लामबंदी कर रहा था। कैराना में भाजपा प्रत्याशी प्रदीप चौधरी का स्थानीय स्तर पर तगड़ा विरोध था। सपा उम्मीदवार इकरा हसन जहां अपने व्यवहार से हर वर्ग में सेंध लगा रही थीं तो वहीं यहां का मतदाता बदलाव के लिए पहले ही कमर कसे था। सहारनपुर के चुनाव को पूरी तरह से धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर ले जाने की कवायद नाकाम रही। यहां इमरान मसूद ने न केवल मुस्लिमों का वोट लिया बल्कि उन्हें दलितों व अन्य वर्ग का भी वोट मिला। बसपा यहां इस बार सीन में नहीं थी। इसका लाभ राघवलखनपाल नहीं ले पाए और इमरान का समीकरण काम कर गया। हालांकि बागपत और बिजनौर में रालोद भाजपा का गठबंधन रंग लाया। यहां दोनों ही सीटें इस गठबंधन ने जीत लीं क्योंकि दोनों ही सीटों पर भाजपा के काडर वोटर के अलावा जाटों व अन्य का खूब वोट मिला। एटा जैसी सीट पर सपा ने जिस देवेश शाक्य को टिकट देकर शाक्य वोटर तो बटोरे ही साथ ही भाजपा के राजवीर सिंह की लोगों के बीच न जाने की शिकायत ने भी चुनाव में उलटफेर कर दिया।
रालोद ने छोड़ा साथ तो विपक्ष हो गया लामबंद
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में पश्चिम उप्र में विरोध की बयार चली थी। सपा रालोद का गठबंधन था और लग रहा था कि इस बार परिवर्तन हो सकता है। यहां विपक्ष की सीटें तो बढ़ी पर भाजपा ने धमाकेदार अंदाज में प्रदेश में सरकार बनाई। रालोद ने लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन को तोड़ दिया और अखिलेश का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। ऐसे में रालोद के प्रति पश्चिम में एक धड़ा नाराज हुआ क्योंकि यह धड़ा मान रहा था कि इस बार पश्चिम में हवा कुछ और है। बमुश्किल मुस्लिम रालोद के साथ आए थे पर एक झटके में सारा समीकरण गड़बड़ा गया। इस बदलाव का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि रालोद के जाने से यह नाराज पूरा वर्ग लामबंद हो गया। मन की इस टीस को वोटों में बदलने का काम किया गया। नतीजा मुस्लिम, दलित, ओबीसी, यादव तथा कुछ सीटों पर बड़ी संख्या में ब्राह्मणों ने इंडिया गठबंधन को मजबूती से वोट किया।
ठाकुरों की नाराजगी रही असरकारी
भाजपाई खूब दुहाई देते रहे कि ठाकुर नाराज नहीं है पर चुनाव परिणाम ने साफ कर दिया कि ठाकुरों की नाराजगी असरकारी थी। विभिन्न सीटों पर ठाकुरों को मनाने के लिए दिग्गज लगाए गए। पंचायतों में खूब मान मनोव्वल हुए पर कवायद पूरी तरह से रंग नहीं ला सकी। मुजफ्फरनगर, कैराना, एटा, बदायूं, सहारनपुर, आंवला समेत तमाम सीटों पर यह नाराजगी रही। आंवला सीट पर तो इसका तगड़ा असर देखने को मिला। इसका असर यह रहा कि पूरे पश्चिम उप्र में कई सीटों पर इसका असर भाजपा के लिए हार के रूप में सामने आया तो कई सीटों पर इसका असर कम मार्जिन के रूप में दिखा।
ये हैं पश्चिमी उप्र की सीटें
सीट जीते दल
सहारनपुर, इमरान मसूद-कांग्रेस
कैराना , इकरा हसन-सपा
मुजफ्फरनगर, हरेंद्र मलिक-सपा
बिजनौर - चंदन चौहान रालोद
नगीना (आरक्षित) चंद्रशेखर आजाद
मुरादाबाद - रुचि वीरा सपा
रामपुर - मोहिबुल्लाह सपा
संभल - जियाउर्रहमान सपा
अमरोहा- कुंवर दानिश अली कांग्रेस
मेरठ - अरुण गोविल भाजपा
बागपत - डा. राजकुमार सागवान रालोद
गाजियाबाद - अतुल गर्ग भाजपा
गौमतबुद्धनगर - डा. महेश शर्मा भाजपा
बुलंदशहर (आरक्षित) - डा. भोला सिंह भाजपा
अलीगढ़ - सतीश कुमार गौतम भाजपा
हाथरस (आरक्षित), - अनूप प्रधान वाल्मीकि भाजपा
मथुरा - हेमामालिनी भाजपा
आगरा - एसपी बघेल भाजपा
फतेहपुर सीकरी - राजकुमार चाहर भाजपा
फिरोजाबाद - अवधेश प्रसाद सपा
मैनपुरी - डिंपल यादव सपा
एटा - देवेश शाक्य सपा
बदायूं - आदित्य यादव सपा
बरेली - छतरपाल सिंह गंगवार भाजपा
आंवला - नीरज मौर्य 95 वोटों से आगे सपा
पीलीभीत - जितिन प्रसाद भाजपा
शाहजहांपुर - अरुण कुमार सागर भाजपा