नई दिल्ली। महंगाई घटने के बावजूद मौद्रिक नीतियों को लगातार सख्त बनाए रखने से देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार प्रभावित हो सकती है। आरबीआई को महंगाई से ध्यान हटाकर अब आर्थिक वृद्धि पर ध्यान देना होगा, जिसके लिए ब्याज (रेपो) दर में कटौती करने की जरूरत है।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के दो बाहरी सदस्यों आशिमा गोयल और जयंत आर वर्मा ने कहा, महंगाई के खिलाफ लड़ाई में आर्थिक वृद्धि की कीमत चुकानी पड़ी है। हालांकि, असहनीय रूप से उच्च महंगाई की लंबी अवधि खत्म हो रही है। अगली कुछ तिमाहियों में हम महंगाई में अधिक कमी देखेंगे और यह धीमे-धीमे चार फीसदी के लक्ष्य पर आ जाएगी।
वर्मा ने कहा, मौद्रिक नीति आमतौर पर तीन से पांच तिमाहियों के अंतराल के साथ काम करती है। इसका मतलब है कि उच्च ब्याज दरें अगले साल विकास दर को प्रभावित करेंगी। 2023-24 की तुलना में मैं 2024-25 और 2025-26 में जीडीपी की वृद्धि दर को लेकर अधिक चिंतित हूं। 2023-24 में मजबूत पकड़ वाली वृद्धि जो हमने देखी है, वह इन चिंताओं को कम करने के लिए बहुत कम है। अब हमें जीडीपी की ओर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा, 2023-24 में आर्थिक वृद्धि 8.2 फीसदी थी, जबकि 2024-25 में इसके करीब 0.75 से एक फीसदी तक कम रहने का अनुमान है। हालांकि, भारत में आठ फीसदी की वृद्धि दर हासिल करने की क्षमता है।
अब आगे बढ़ने का समय : गोयल
गोयल ने कहा, हमने खाद्य कीमतों के झटकों का असर देखने के लिए एक साल तक इंतजार किया है। अब आगे बढ़ने का समय है। खाद्य कीमतों के झटके के कारण महंगाई दर आरबीआई के चार फीसदी के लक्ष्य से ऊपर बनी हुई है। यहां तक कि ब्याज दर में 0.25 फीसदी की कटौती के साथ भी मौद्रिक नीति महंगाई को लक्ष्य तक लाने की दिशा में अवस्फीतिकारी बनी रहेगी।
महंगाई के लक्ष्य तक आने का करें इंतजार
एमपीसी के तीसरे बाहरी सदस्य शशांक भिड़े ने स्वीकार किया कि नीति निर्धारण में विकास एक महत्वपूर्ण पैमाना है। उन्होंने कहा, उच्च खाद्य महंगाई का असर तत्काल भले न दिखे, लेकिन इसका मजदूरी दरों, सब्सिडी और उन क्षेत्रों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है, जहां खाद्य उत्पाद कच्चे माल के रूप में हैं। इसलिए, वह ब्याज दरों में कटौती के लिए तब तक इंतजार करना पसंद करेंगे, जब तक महंगाई लक्ष्य तक न आ जाए।
कटौती के पक्ष में मतदान
महंगाई पर काबू पाने के प्रयास में आरबीआई ने रेपो दर में लगातार आठवीं बार कोई बदलाव नहीं किया है। यह अभी 6.5 फीसदी पर बनी हुई है। आरबीआई की पिछली एमपीसी बैठक में वर्मा और गोयल दोनों ने ब्याज दरों में कटौती के पक्ष में मतदान दिया था, जबकि चार सदस्यों ने इसे 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने की वकालत की थी।
अपनी वृद्धि दर से हैरान कर रहा भारत : एसएंडपी
एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 6.8 फीसदी पर कायम रखा है। एजेंसी ने सोमवार को जारी 'आर्थिक परिदृश्य' में कहा, भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी आर्थिक वृद्धि के साथ हैरान कर रही है। 2023-24 में यह 8.2 फीसदी की दर से बढ़ी है। हालांकि, चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर घटकर 6.8 फीसदी पर आ जाएगी। 2025-26 और 2026-27 में भारतीय जीडीपी क्रमश: 6.9 फीसदी व 7 फीसदी की दर से बढ़ेगी।
एजेंसी ने कहा, ऊंची ब्याज दरों और कम राजकोषीय प्रोत्साहन से गैर-कृषि क्षेत्रों में मांग में कमी आएगी।