नई दिल्ली । आरबीआई पांच साल में पहली बार रेपो दर में कटौती कर सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि 7 फरवरी को होने वाली घोषणा में केंद्रीय बैंक इसका फैसला कर सकता है। दो वर्षों से रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया गया है और यह जस की तस है। प्रमुख नीतिगत दर में आखिरी बार कटौती मई, 2020 में की गई थी।
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक 5-7 फरवरी तक होगी। विश्लेषकों का मानना है कि उपभोग आधारित मांग को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय बैंक रेपो दर को घटाने का फैसला कर सकता है। हालांकि रुपये में गिरावट चिंता बनी हुई है। रुपया 87 के नीचे आ गया है। खुदरा महंगाई पिछले वर्ष अधिकांश समय आरबीआई के 6 फीसदी के लक्ष्य के भीतर बनी हुई है। ऐसे में सुस्त खपत से प्रभावित आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए रेपो दर में कटौती हो सकती है।
नकदी बढ़ाने के उपायों पर जोर
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, इस बार दो वजहों से दर घटने की संभावना है। पहली, आरबीआई की नकदी बढ़ाने के उपायों की घोषणा से बाजार की स्थिति सुधरी है। 27 जनवरी को बैंकिंग प्रणाली में 1.5 लाख करोड़ की नकदी डालने की घोषणा की गई है। दरों में कटौती के लिए यह भी एक शर्त थी। दूसरी, बजट ने प्रोत्साहन दिया है व इसके समर्थन के लिए रेपो दर को घटाना उचित हो सकता है। हम विकास के पूर्वानुमान में बदलाव की उम्मीद कर सकते हैं क्योंकि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जीडीपी वृद्धि दर का 6.4% का अनुमान लगाया था।
6.5% पर स्थिर बनी है दो वर्षों से नीतिगत दर
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, हमारा मानना है कि इस बार रेपोदर में कटौती के पक्ष में पलड़ा झुका हुआ है। आरबीआई ने फरवरी, 2023 से रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा है। कोरोना के समय में राहत देने के लिए दरें लगातार घटाई गईं थीं और फिर इसे धीरे-धीरे बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया था। नए गवर्नर संजय मल्होत्रा अपनी पहली एमपीसी की बैठक की अध्यक्षता करेंगे।