नई दिल्ली । उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है और इसका उपयोग संपत्ति विवादों को निपटाने के लिए नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि मां का भरण-पोषण करना हर बेटे का नैतिक और कानूनी दायित्व है और अधिनियम की धारा 4(2) बच्चों पर वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण का दायित्व डालती है ताकि वे सामान्य जीवन जी सकें। कोर्ट ने बेटे को मां के भरण-पोषण के लिए हर महीने 10,000 रुपये देने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 को रखरखाव सुरक्षित करने के लिए एक तंत्र प्रदान करने और वित्तीय या अन्य सहायता से वंचित वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था। अधिनियम एक सामाजिक कानून है इसे उदारतापूर्वक समझा जाना चाहिए और इसके प्रावधानों को उन लक्ष्यों और उद्देश्यों के प्रकाश में लागू किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति प्रसाद ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत दायर उनके आवेदन की अस्वीकृति को बरकरार रखते हुए अपीलीय प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली एक वृद्ध महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।