चेन्नई। तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने कहा कि मछुआरा समुदाय भारत-श्रीलंका के बीच 1974 में हुए अन्यायपूर्ण समझौते का शिकार है। यह करार मछुआरों की आजीविका के प्रति अत्यंत संवेदनहीन है।
उन्होंने आरोप लगाया कि 1974 की गलती के लिए सत्ताधारी द्रमुक भी उतनी ही जिम्मेदार है, क्योंकि उस समय वह सत्ता में थी।
तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने रविवार को कहा कि मछुआरों के मुद्दे को राजनीतिक रंग देने और केंद्र सरकार को दोष देने के बजाय राज्य सरकार को उनके आंसू पोछने चाहिए। रामेश्वरम में विरोध प्रदर्शन कर रहे मछुआरों से मुलाकात के बाद रवि ने कहा, मछुआरा समुदाय भारत-श्रीलंका के बीच 1974 में हुए अन्यायपूर्ण समझौते का शिकार है। यह करार मछुआरों की आजीविका के प्रति अत्यंत संवेदनहीन है। उन्होंने आरोप लगाया कि 1974 की गलती के लिए सत्ताधारी द्रमुक भी उतनी ही जिम्मेदार है, क्योंकि उस समय वह सत्ता में थी।
राज्यपाल के आरोपों पर राज्य के कानून मंत्री एस रेगुपति ने कहा कि राज्यपाल राजनीति का काम भाजपा नेताओं को ही करने दें। रेगुपति ने कहा, राज्यपाल को मछुआरों को श्रीलंका से रिहा कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा, तत्कालीन सीएम एम करुणानिधि ने कच्चातिवु को भारत का हिस्सा साबित करने के सबूत पेश किए थे और संसद में इसके हस्तांतरण का विरोध किया था।
तत्कालीन केंद्र व राज्य सरकार ने किया पाप
राज्यपाल ने सोशल मीडिया पर कहा, 1974 में दिल्ली व चेन्नई की सरकारों ने कच्चातिवु द्वीप के पास समुद्र में मछुआरों के मछली पकड़ने का अधिकार छीनकर गंभीर पाप किया था। तब से मछुआरा समुदाय कठिनाइयों का सामना कर रहा।