इन्सानों के जैविक नमूने बायोमेडिकल कचरे में नहीं फेंके जाएंगे। केंद्र सरकार ने वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अज्ञात नमूनों का इस्तेमाल करने की अनुमति दी है। इसके तहत देश की निजी कंपनियां इन नमूनों का इस्तेमाल अपने शोध में कर सकेंगी, लेकिन उनकी यह खोज सस्ते इलाज के लिए होना चाहिए।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने 15 दिसंबर, 2023 को वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए बचे हुए अज्ञात/गुमनाम नमूनों के नैतिक उपयोग के लिए दिशानिर्देश तैयार किए, जिन्हें बीते 19 जून को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी किया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अक्सर जांच या इलाज के दौरान इन्सानों के जैविक नमूने एकत्रित होते हैं। ये नमूने शरीर के अंग, टिश्यू, रक्त, यूरिन, सलाइवा, डीएनए, बाल या फिर नाखून हो सकते हैं। चूंकि ये नमूने चिकित्सा प्रगति और मरीज के नैदानिक सटीकता में सुधार के लिए एक मूल्यवान संसाधन हो सकते हैं, इसलिए सरकार ने दिशानिर्देशों को मंजूरी दी है।
रक्त जांचने वाली प्रयोगशालाएं
अभी तक अस्पताल या रक्त जांच करने वाली प्रयोगशाला इन नमूनों को बायोमेडिकल कचरे के जरिए फेंक देते हैं। इसके लिए लगभग सभी अस्पतालों में अलग अलग पॉलीथिन होते हैं साथ ही जैविक कचरे को लेकर अस्पतालों में समितियां भी संचालित हैं जो स्वास्थ्य कर्मचारियों में किसी तरह के संक्रमण को रोकने के लिए जैविक कचरे की निगरानी भी करती हैं। हालांकि इन नए दिशा निर्देशों के जरिए अस्पतालों से निकलने वाला यही जैविक कचरा प्राइवेट कंपनियों के वाणिज्यिक प्रयोजनों का सहारा बनेगा।
पूरी तरह से गुमनाम हो नमूना
स्वास्थ्य मंत्रालय ने साफ तौर पर कहा है कि ये दिशानिर्देश केवल बचे हुए नमूनों पर लागू होंगे जो अपरिवर्तनीय रूप से अज्ञात हैं और आगे के शोध के लिए अभिप्रेत नहीं हैं। नमूने पूरी तरह से गुमनाम होने चाहिए। उनका मूल रोगी से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। अस्पताल मजबूत डाटा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार रहेंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य नए नैदानिक उपकरणों और उपचारों के अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना है।