नई दिल्ली। छोटे-छोटे पीजी व कमरों में लगे देश-विदेश के नक्शे। स्टडी टेबल, उस पर अशोक स्तंभ, अखबार, किताबें रखी हैं। एक बेड, जिसमें ठीक से सोने की भी जगह नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में अभ्यर्थी कमरे में अपना पूरा संसार बसाए हैं। यही कमरा उनकी लाइब्रेरी के साथ रसोई भी है। कमरे में खिड़की का कुछ अता पता नहीं है।
कोई हादसा हो जाए तो निकासी का दूसरा कोई रास्ता भी नहीं। यह नजारा है ओल्ड राजेंद्र नगर में प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के पीजी का। इनमें रहना किसी खतरे से कम नहीं है।
संकरी गलियां, तारों का जाल, बेतरतीब तरीके बने पोर्टा केबिन नुमा पीजी (पेइंग गेस्ट)। केबिन बनाकर अभ्यर्थियों को ठूंसा जा रहा है। मकान मालिक किराए के लालच में नियमों को ताक पर रखकर पीजी चला रहे हैं। मजबूरी में अभ्यर्थी जान जोखिम में डालकर भविष्य के सपने बुन रहे हैं। पीजी की स्थिति यह है कि 50 से 60 गज के एक पीजी में 30-40 अभ्यर्थी रहते हैं। अभ्यर्थियों के मुताबिक, यहां मकान मालिक खुद पीजी नहीं चलाते हैं। बल्कि अपने मकान को पीजी माफियाओं को साल के एकमुश्त किराए पर दे देते हैं। आलम यह है कि इनकी छत पर किचन चलाई जाती है। सीढ़ियों के नीचे बिजली के मीटर लगे हैं और फायर सेफ्टी का कोई इंतजाम नहीं है।
मकान मालिक और ब्रोकर का खेल
करोल बाग, मुखर्जी नगर, निरंकारी कॉलोनी, गांधी विहार, संत नगर, नेहरू विहार, परमानंद नगर समेत दर्जनों कॉलोनियां हैं, जहां लाखों की संख्या में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक प्रति वर्ष 20-25 हजार अभ्यर्थी तैयारी करने के लिए पहुंचते हैं। यहां अधिकतर मकान चार से पांच मंजिल के हैं। अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ने से पीजी की मांग बढ़ी है। इससे किराया बढ़ता गया। यहां वैध-अवैध प्रॉपर्टी डीलरों की फौज है। पीजी माफिया भी सक्रिय हैं। कमरा दिलाने के एवज में ब्रोकर पीजी व कमरे का आधे से पूरे महीने का किराया वसूलता है। इससे अभ्यर्थी का एक माह का किराया लगभग 40 से 50 हजार रुपये पहुंच जाता है। पीजी मालिक व संचालक को भी दो महीने का एडवांस किराया देना होता है।
किराए के नाम पर वसूली जा रही अधिक कीमत
ओल्ड राजेंद्र नगर में बिहार से सिविल परीक्षा की तैयारी करने आए ऋतुज राय बताते हैं कि वह यहां बीते दो साल से हैं। वह पीजी का प्रति माह 15 हजार रुपये किराया देते हैं। बिजली व पानी की भी अलग से कीमत चुकानी होती है। उन्होंने बताया कि तीन से छह महीने से पहले पीजी छोड़ नहीं सकते हैं। पीजी मालिक हर साल 500 से 1000 रुपये बढ़ाते हैं। मध्य प्रदेश से आए राहुल सिंह बताते हैं कि किराये के नाम पर यहां मनमानी की जा रही है। इसके लिए एक नियमित समिति बनानी चाहिए। यह एक कारोबार है। ऐसे में अभ्यर्थियों से एक तय रकम ली जाए। सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया जाए।
पीजी को प्लाईवुड से किया है विभाजित
इन पीजी व कमरों को प्लाईवुड से विभाजित किया है। इनमें न ही कोई वेंटिलेशन है और न ही आपातकालीन निकासी द्वार। एक ही गेट से प्रवेश और निकासी है। पीजी के अंदर प्लाईवुड से अलग-अलग रहने के हिस्से बनाए हुए हैं। इन पीजी का किराया आठ से 30 हजार रुपये तक है। पीजी में रहने वाले अभ्यर्थियों ने बताया कि पिछले कुछ समय के दौरान पीजी में लकड़ी व पीवीसी के पोर्टा केबिन का चलन बढ़ा है।