नई दिल्ली । भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल ही नहीं पूरी पार्टी बैकफुट पर दिखाई दे रही थी। विपक्ष भी लगातार इसी मुद्दे, खासकर कथित शराब घोटाला पर सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा था। इससे केजरीवाल की छवि भी खराब हो रही थी। भ्रष्टाचार के आरोपों से बिगड़ी छवि को बेहतर करने के लिए केजरीवाल ने इस्तीफे का सियासी पासा फेंक विपक्ष के मुद्दे को चारों खाने चित कर दिया है।
केजरीवाल के इस्तीफे देने के निर्णय से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने के अंदेशे को भी विराम दे दिया है। मतदाताओं के बीच भी स्पष्ट संदेश दिया है कि वह तब तक इस कुर्सी पर नहीं बैठेंगे, जबतक जनता उन्हें बेदाग छवि के साथ फिर से बहुमत देकर मुख्यमंत्री नहीं बनाती है। तीसरी बार सरकार बनने के बाद से ही विपक्षी पार्टियां लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आप सरकार को घेर रही थी। अलग-अलग जांचों में भी पार्टी फंसी हुई थी।
मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री ही नहीं आप के मंत्री भी जेल के सलाखों के पीछे रहे। केजरीवाल व मनीष सिसोदिया को जमानत तो मिली लेकिन वह भी शर्तों पर। इस तरह से भ्रष्टाचार आप के लिए जी का जंजाल बना हुआ था। उधर, सुप्रीम कोर्ट की बंदिशों से बतौर मुख्यमंत्री काम करना सियासी तौर पर उनके लिए फायदेमंद नहीं था। राजनीति के जानकारों की माने तो इस सियासी पासा के बाद आम आदमी पार्टी की छवि बेहतर होगी। विधानसभा चुनाव में बहुमत में आती है तो बेदाग छवि के साथ केजरीवाल का भी कद उभरेगा।
छह महीने में विधानसभा सत्र बुलाने की थी मजबूरी
अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे देने के निर्णय से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने के अंदेशे को भी विराम दे दिया है। इससे विपक्ष की जो रणनीति थी वह धड़ाम हो गई है। दरअसल छह महीने में विधानसभा सत्र बुलाने की मजबूरी सरकार की थी। अदालत के शर्तों के अनुसार कैबिनेट की बैठक और विधानसभा सत्र बुलाने में कई बाधाएं थी। जिससे सांविधानिक संकट का खतरा था, जिसे विधानसभा नेता प्रतिपक्ष बार-बार मुद्दा बना रहा था। यहां तक कि राष्ट्रपति ने भी इस आरोप का संज्ञान लेते हुए इस मामले को केंद्रीय गृह मंत्रालय और सचिव के पास भेज दिया था। लेकिन इस्तीफे की पेशकश से विपक्ष के इस दांव को भी धराशायी कर दिया है।
जेल से इस्तीफा नहीं देने की वजह
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो अरविंद केजरीवाल ने जेल में रहते हुए इसलिए इस्तीफा नहीं दिया क्योंकि उनकी पार्टी में पकड़ मजबूत नहीं रह पाती। पार्टी के बिखरने का भी खतरा था। जमानत पर लौटने और जेल से बाहर होने से केजरीवाल की पार्टी व नेताओं पर पैनी नजर होगी। दलबदल करने वालों को भी अहसास होगा कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में मजबूत स्थिति में है और कथित घोटालों से बिगड़ी छवि को इस्तीफा देने से सुधर जाएगी। मुख्यमंत्री सहानुभूति बटोरने में कामयाब हो जाएंगे। इस्तीफा देना छवि चमकाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। पार्टी में उभर रहे विरोध के सुर भी शांत पड़ जाएगा।
एक तीर से केजरीवाल ने साधे कई निशाने
इस्तीफे का एलान कर अरविंद केजरीवाल ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। भ्रष्टाचार के आरोप, इस्तीफा देने का दबाव, कथित शराब घोटाले समेत संवैधानिक संकट होने के विपक्ष की सभी आरोप इससे धराशायी हो गए। अब कांग्रेस और भाजपा को नये सिरे से रणनीति तैयार करनी होगी। विधानसभा चुनाव में नई रणनीति से दोनों दलों को उतरना होगा। अगर आप किसी महिला या अनुसूचित जाति के सदस्य को सीएम बनाती है तो विपक्ष को आक्रामकता के नए पैमाने गढ़ने पड़ेंगे। साथ में अरविंद केजरीवाल के आक्रामक अभियान का भी जवाब देना होगा।