नई दिल्ली । आम आदमी पार्टी के विधायक राजधानी में फिसड्डी साबित हुए। साल 2014 के बाद यह लगातार तीसरी बार है जब लोकसभा चुनाव में विधायकों का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा। हालांकि, कांग्रेस के साथ हुए गठबंधन के कारण वोट प्रतिशत जरूर बढ़ गया। आप उम्मीदवारों को 40 से 45 फीसदी के वोट मिले, जबकि साल 2019 में हुए चुनाव में यह आंकड़ा 16 से 27 फीसदी रहा था।
गठबंधन के तहत आप के उम्मीदवार इस लोकसभा चुनाव में दिल्ली की चार सीटों पर लड़ रहे थे। इसमें पश्चिमी दिल्ली और नई दिल्ली लोकसभा सीट पर आप के दस-दस विधायक हैं, जबकि दक्षिणी दिल्ली लोकसभा में नौ और पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर आप के सात विधायक हैं। इन सभी सीटों पर आप के उम्मीदवारों को उम्मीद से काफी कम वोट मिले। लगभग 36 विधानसभा क्षेत्रों में आप के उम्मीदवारों को काफी कम वोट मिले।
पार्टी सूत्रों कहना है कि अब सभी विधायकों के प्रदर्शन की समीक्षा होगी। इसमें देखा जाएगा कि किन विधायकों के कारण गठबंधन को उम्मीद के अनुसार वोट नहीं मिले। समीक्षा के बाद प्रदर्शन के आधार पर विधानसभा चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों के चेहरे बदले जा सकते हैं, जिनका प्रदर्शन बेहद खराब रहा है या पार्टी के पक्ष में माहौल नहीं बना पाए। साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी आम आदमी पार्टी ने तत्कालीन 15 विधायकों की टिकट काटकर नए चेहरों को मौका दिया था। आशंका है कि दिसंबर-जनवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़े स्तर पर फेरबदल हो सकता है। इनमें कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं।
विरोध करने वालों पर खास नजर
चुनाव के दौरान पार्टी लाइन से हटकर या पार्टी के खिलाफ विरोध करने वाले विधायकों पर विशेष नजर बनी हुई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि चुनाव से ठीक पहले पटेल नगर से आप विधायक राजकुमार आनंद ने मुख्यमंत्री सहित दिल्ली सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। ऐसे लोगों को इस बार चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा। इसके अलावा कुछ और भी ऐसे नेता हैं जिन्होंने पार्टी लाइन से बाहर जाकर बातें रखी थीं।