नई दिल्ली । ओखला में सितंबर से दिल्ली का सबसे बड़ा कंपोस्ट प्लांट चालू हो जाएगा। यहां प्रतिदिन 300 टन कूड़े का निस्तारण होने लगेगा। बाद में इसकी क्षमता बढ़ाकर 500 टीपीडी करने की तैयारी है। इस पहल से दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों की ऊंचाई कम करने में काफी हद तक मदद मिलेगी।
दिल्ली में हर रोज करीब 11000 मीट्रिक टन कचरा निकलता है, जिसमें करीब 8100 मीट्रिक टन कचरे का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट, कंपोस्ट प्लांट पर समाधान हो रहा। ओखला कंपोस्ट प्लांट पर मौजूदा समय हरदिन करीब 200 टन कचरे का निस्तारण हो रहा है। सितंबर के आखिर तक इसकी क्षमता बढ़ने से ये सबसे बड़ा कंपोस्ट प्लांट बन जाएगा।
इसके अलावा बवाना में दो हजार मीट्रिक टन का वेस्ट टू एनर्जी प्लांट भी बन रहा है जो 2026 तक बनकर तैयार होगा। एमसीडी अधिकारियों के मुताबिक नए कंपोस्ट प्लांट, पुराने प्लांट की क्षमता बढ़ाकर और वेस्ट टू एनर्जी प्लांट लगाकर ही लैंडफिल साइटों पर कचरे के बोझ को कम किया जा सकता है।
बारिश में इंजीनियर्ड लैंडफिल साइट का भी परीक्षण
ओखला लैंडफिल साइट करीब 47 एकड़ एरिया में फैली हुई है। निगम ने इसी साल मार्च में ओखला लैंडफिल साइट के बगल के तेहखंड में 15.47 एकड़ क्षेत्रफल में इंजीनियर्ड लैंडफिल साइट खोली है। यहां हरदिन करीब 500 टन ठोस कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान का काम शुरू किया गया है।
एमसीडी का दावा है कि इस लैंडफिल साइट से मिट्टी दूषित नहीं होगी और भूजल व हवा मैली नहीं होगी। खासकर बारिश के दिनों में वेस्ट टू एनर्जी प्लांट से निकली राख पानी के साथ बहकर फैलेगी नहीं। ओखला लैंडफिल साइट पर जमा पुराने कचरे के पृथक्करण के लिए मौजूदा समय करीब 26 ट्रोमेल मशीनें लगाई गई हैं। एमसीडी के मुताबिक करीब 2500 टन हरदिन कुराने कचरे का पृथक्करण किया जा रहा।
घटने के बजाय बढ़ रहा कचरा
ओखला लैंडफिल साइट पर धीमी गति से जैविक कचरे के खनन के चलते इसे पूरी तरह साफ करने की तारीख दो साल आगे बढ़ा दी गई है। इसे 2024 के आखिर तक साफ होना था, अब इसे 2026 के आखिर तक साफ करने का लक्ष्य है। 2019 में लैंडफिल साइट पर जैविक कचरे की खुदाई का काम शुरू हुआ, लेकिन अब तक करीब 30 लाख मीट्रिक टन कचरे का खनन ही हो पाया।
करीब 40 लाख मीट्रिक टन जैविक कचरा अभी यहां है। कचरे की मात्रा हर दिन बढ़ रही है। निगम के मुताबिक जगह के अभाव में जैविक कचरे को उपचार के बाद इससे निकले आरडीएफ और सीएंडडी वेस्ट को ओखला लैंडफिल साइट पर ही जमा किया जाता रहा। ऐसा ही गाजीपुर और भलस्वा लैंडफिल साइटों पर भी हुआ।